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________________ समत्तं णामं चउत्थं अज्झायणं सम्यक्त्व नामक चतुर्थ अध्ययन चउत्थं अज्झयणं पठमोइसो चतुर्थ अध्ययन का प्रथम उद्देशक शस्त्र परिज्ञा नामक प्रथम अध्ययन में छह काय जीवों का वर्णन करके जीव और जीव पदार्थों का निरूपण किया गया है। जीवों के वध से कर्मबन्ध और उनका वध नहीं करने से तथा उनकी रक्षा करने से कल्याण होना बता कर आस्रव और संवर नामक दो पदार्थ (तत्त्व) कहे गये हैं। इस प्रकार प्रथम अध्ययन में जीव, अजीव, आस्रव और संवर ये चार तत्त्व कहे गये हैं। लोक विजय नामक दूसरे अध्ययन में जिस प्रकार प्राणियों के कर्मबन्ध होता है और जिस प्रकार उनकी कर्मों से मुक्ति होती है यह बता कर बन्ध और निर्जरा नामक पदार्थ कहे गये हैं। शीतोष्णीय नामक तीसरे अध्ययन में साधु को शीत और उष्ण परीषहों को समभाव पूर्वक सहन करना चाहिये। यह कह कर उनके फल रूप मोक्ष का निरूपण किया गया है। इस प्रकार इन तीन अध्ययनों में जीव, अजीव, आस्रव, संवर, बंध, निर्जरा और मोक्ष - ये सात पदार्थ कहे गये हैं. परंतु इन अध्ययनों में मोक्ष साधना के मूल कारण सम्यक्त्व का वर्णन नहीं आया है। अतः आगमकार इस चतुर्थ अध्ययन में सम्यक्त्व का वर्णन करते हैं। इसके प्रथम उद्देशक का प्रथम सूत्र इस प्रकार है - अहिंसा धर्म का निरूपण (२२१) से बेमि-जे य अईया, जे य पड्डुप्पण्णा, जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे, एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णविंति, एवं परूविंति सव्वे पाणा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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