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________________ ६० आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 88888888888888888888888888 8888888 (११६) एस वीरे पसंसिए जे ण णिविजइ आयाणाए। कठिन शब्दार्थ - पसंसिए - प्रशंसा की जाती है, आयाणाए - संयम से, णिविजइघबराता है, खेद का अनुभव करता है। भावार्थ - वह वीर प्रशंसनीय होता है जो संयम से नहीं घबराता है अर्थात् संयम में सतत लीन रहता है। भिक्षाचरी में समभाव (१२०) “ण मे देई" ण कुप्पिज्जा, थोवं लछण खिंसए, पडिसेहिओ परिणमिजा। . कठिन शब्दार्थ - कुप्पिज्जा - क्रोध करे, थोवं - अल्प, लर्बु - प्राप्त होने पर, खिंसए - निंदा न करे, पडिसेहिओ - प्रतिषेध - मना करने पर, परिणमिजा - लौट जाय। भावार्थ - "यह गृहस्थ मुझे भिक्षा नहीं देता" ऐसा सोच कर उस पर क्रोध न करे। अथवा थोड़ा आहार मिलने पर उसकी निंदा न करे। गृहस्वामी-दाता द्वारा निषेध करने पर उसके घर से वापस लौट जाय। (१२१) एयं मोणं समणुवासिज्जासि त्ति बेमि। ॥ बीअं अज्झयणं चउत्थोद्देसो समत्तो॥. कठिन शब्दार्थ - मोणं - मौन का - मुनि धर्म का, समणुवासिज्जासि - समनुवासयेःसम्यक् प्रकार से पालन करे। भावार्थ - इस प्रकार मौन का - मुनि धर्म का सम्यक् प्रकार से पालन करे। ऐसा मैं कहता है। विवेचन - विषय भोगों को जीत लेने वाला पुरुष सच्चा वीर कहलाता है। उसकी प्रशंस इन्द्रादि देव भी करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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