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दूसरा अध्ययन - चौथा उद्देशक - अहिंसा का उपदेश @@@@@@@@@@@@@@@@RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRE पराजित हो जाते हैं और वे स्त्रियों को भोग सामग्री मानने की गलत धारणा से ग्रस्त हो जाते हैं। स्त्री को आयतन - भोग सामग्री मानकर उसके भोग में लिप्त हो जाना आत्मा के लिए घातक और अहितकर है। इसे बताने के लिए ही सूत्रकार ने ये विशेषण दिये हैं - यह दुःख का कारण है। मोह, मृत्यु, नरक और तिर्यंच गति में भव भ्रमणका कारण है। .
. . (११५) . उदाहु वीरे, अप्पमाओ महामोहे। .
भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कहा है - महामोह रूप स्त्रियों में अप्रमत्त (प्रमत्त नहीं) बने।
... (११६) अलं कुसलस्स पमाएणं, संति मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए।
कठिन शब्दार्थ - संतिमरणं - शांति (मोक्ष) और मरण (संसार) को, भेउरधम्म - भंगुर धर्मा (नाशवान्)। ।
भावार्थ - कुशल (बुद्धिमान्) पुरुष को प्रमाद नहीं करना चाहिये। शांति (मोक्ष) और 'मरण अर्थात् संसार के स्वरूप को विचार कर तथा शरीर को भंगुरधर्मा-नश्वर जान कर प्रमाद
नहीं करे। .. .
(११७)
(११७) . - णालं पास अलं तव एएहिं, एयं पास मुणी? महब्भयं।
भावार्थ - ये भोग, इच्छा की तृप्ति करने में समर्थ नहीं है। यह देख! तुम को इन भोगों से क्या प्रयोजन है? हे मुनि! ये भोग महान् भय रूप है, इस बात को तुम देखो। . ..
अहिंसा का उपदेश
. (११८) णाइवाइज्ज कंचणं। भावार्थ - किसी भी प्राणी की हिंसा न करो।
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