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दूसरा अध्ययन - द्वितीय उद्देशक - आर्य मार्ग 88888 8888888888888888888888888888
आर्य मार्ग
(८३) एस मग्गे आरिएहिं पवेइए, जहेत्थ कुसले णोवलिंप्पिजासि त्ति बेमि॥८३॥ ..
॥ बीअं अज्झयणं बीओद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - एस मग्गे - यह मार्ग, आरिएहिं - आर्य पुरुषों-तीर्थंकरों ने, पवेइएफरमाया है, कुसले - कुशल-बुद्धिमान् पुरुष, णोवलिंप्पिज्जासि - लिप्त न हो। . भावार्थ - यह मार्ग आर्य पुरुषों - तीर्थंकरों ने फरमाया है। अतः कुशल-बुद्धिमान् पुरुष जीव हिंसा रूप व्यापार में लिप्त न हों। ऐसा मैं कहता हूं। . - विवेचन - तीन करण और तीन योग से प्राणियों की हिंसा का त्याग और रत्नत्रयी (सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र) रूप भाव मोक्षमार्ग आर्य पुरुषों के द्वारा कहा गया है, इसलिये यही आदर करने योग्य हैं। बुद्धिमान् पुरुष को चाहिये कि वह इस आर्य मार्ग को अंगीकार करके आत्मकल्याण में प्रवृत्ति करे।
आर्य की परिभाषा करते हुए कहा गया है -.
"आरायातः सर्वहेयधर्मभ्य इत्यार्याः-संसारार्णवतटवर्तिनः क्षीण घाति कमांशाः संसारोदर विवरवर्तिभावविदः तीर्थकृतस्तैः 'प्रकर्षण' सदेवमनुजायां पर्षद सर्वस्वभाषानु-गामिन्या वाचा योगपद्याशेषसंशीतिच्छेन्या प्रकर्षण वेदितः-कथितः प्रतिपादित इतियावत्।" ___ अर्थात् - जो आत्मा पापकर्म से सर्वथा अलिप्त है, जिसने घाती कर्म को क्षय कर दिया है, पूर्ण ज्ञान एवं दर्शन से युक्त हैं, ऐसे तीर्थंकर एवं सर्वज्ञ सर्वदर्शी पुरुषों को आर्य कहा गया है और उनके द्वारा प्ररूपित पथ को आर्य मार्ग कहते हैं। यानी जो मार्ग प्राणी मात्र के लिए हितकर, हिंसा आदि दोष से दूषित नहीं है, सब के लिए सुखशांतिप्रद है वह आर्यमार्ग है।
॥ इति दूसरे अध्ययन का द्वितीय उद्देशक समाप्त॥
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