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________________ अनुयोगद्वार सूत्र में ले जाकर कहा बेटी! जब तेरा पति अपने शयनागार में आए, तब तू उसका कोई अपराध मानकर उसके सिर पर लात मारना । ऐसा करने पर वह तेरे साथ जैसा व्यवहार करे, वह मुझे आकर बताना। मेरी इस शिक्षा को अवश्य याद रखना।' लड़की ने इस बात को स्वीकार किया। जब उसका पति शयनागार में आया तो उसके अपने पति को कोई दोष बताकर सिर पर एक लात जमा दी। लात लगते ही उसके पति ने स्नेहार्द्र होकर उसके अपराध को गुण समझ कर कहा प्रिये ! मेरा सिर पत्थर की तरह अत्यन्त कठोर है और तुम्हारा चरण शिरीष पुष्प की तरह अत्यन्त कोमल है। इसलिए तुम्हारे पैर में कहीं पीड़ा तो नहीं हुई? क्षमा करना । " यों कहकर उसके पैर को हाथों से दबाने लगा। इस प्रकार उसने अपनी इस नववधू को प्रसन्न किया। लड़की ने माँ के पास आकर उसे सारा वृत्तान्त कह सुनाया । दामाद के इस व्यवहार को सुनकर वह अत्यन्त प्रसन्न होकर अपनी पुत्री से बोली - "बेटी ! तू महाभाग्यशालिनी है। तेरे पति के इस व्यवहार से ऐसा पता चलता है कि तेरा पति सदैव तेरा वशवर्ती होकर रहेगा, घर में भी तेरी बात सदैव चलेगी। अतः तू निर्भय होकर रह, निश्चिन्ततापूर्वक रह । " जब मझली लड़की को विदा करने का समय आया तब ब्राह्मणी ने एकान्त में ले जाकर उसको भी वैसा ही करने की शिक्षा दी। शयनागार में पति के प्रवेश करते ही उसने भी पति को कोई दोष बताकर उसके सिर पर लात जमा दी। पत्नी का यह अप्रत्याशित व्यवहार देखकर उसको कुछ रोष आ गया। उसने रोष में आकर कहा - "तुम्हारा यह व्यवहार कुलवधुओं के योग्य नहीं है। भविष्य में ऐसा मत करना।" यों कहकर कुछ ही देर बाद वह मन में कुछ सोचकर प्रसन्न हो गया फिर उसने कुछ भी नहीं कहा। ६६ - मझली लड़की ने भी प्रातः काल अपनी माता से आकर रात्रिकालीन सारी घटना सुना दी। ब्राह्मणी आनन्दित होकर उससे कहने लगी- "बेटी! तू भी अपने घर में मनचाहा व्यवहार कर । कोई डरने जैसी बात नहीं है। तेरा पति क्षण भर रुष्ट होकर प्रसन्न हो जाएगा।" Jain Education International - इसी प्रकार ब्राह्मणी ने अपनी सबसे छोटी लड़की को भी विदा करते समय वैसी ही शिक्षा दी। उसने भी आवास भवन में आते ही पति के सिर पर पादप्रहार किया। यह व्यवहार करते ही उसका पति रोष में आ गया उसकी आँखें लाल हो गई और कड़क कर बोला "दुष्टे ! कुलकन्या के लिए अयोग्य व्यवहार तूने मेरे साथ क्यों किया ? क्या मैं कमजोर हूँ कि तेरी मार सहकर अपनी अधोगति करवाऊँगा?” यों कहकर उसने अपनी पत्नी को खूब मारा और मारपीट कर घर से निकाल दिया। पतिगृह से निष्कासित लड़की रोती हुई अपनी माँ के पास गई और उसे अपने पति के द्वारा किए हुए व्यवहार की सारी घटना सुनाई। उसे सुनकर For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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