________________
भावोपक्रम
६५
(७०)
भावोपक्रम से किं तं भावोवक्कमे? भावोवक्कमे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २। भावार्थ - भावोपक्रम किस प्रकार का है? भावोपक्रम दो प्रकार का कहा गया है - १. आगमतः तथा २. नोआगमतः । तत्थ आगमओ जाणए उवउत्ते। भावार्थ - वहाँ, जो ज्ञाता होने के साथ-साथ उपयोगयुक्त हो, वह आगमतः भावोपक्रम है। से किं तं णोआगमओ भावोवक्कमे? णोआगमओ भावोवक्कमे दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - पसत्थे य १ अपसत्थे य२। शब्दार्थ - पसत्थे - प्रशस्त, अपसत्थे - अप्रशस्त । भावार्थ - नोआगमतः भावोपक्रम कैसा है? नोआगमतः भावोपक्रम प्रशस्त एवं अप्रशस्त के रूप में दो प्रकार का है। से किं तं अपसत्थे णोआगमओ भावोवक्कमे? अपसत्थे णोआगमओ भावोवक्कमे डोडिणि-गणिया-अमच्चाईणं। . शब्दार्थ - डोडिणि - ब्राह्मणी, गणिया - गणिका-वेश्या, अमच्चाईणं - अमात्य आदि का।
भावार्थ - अप्रशस्त भावोपक्रम किस प्रकार का होता है? . ... ब्राह्मणी, गणिका तथा अमात्य आदि के भावों को जानने का उपक्रम अप्रशस्त नो आगमतः भावोपक्रम है।
विवेचन - ब्राह्मणी, गणिका तथा अमात्य का अप्रशस्त नोआगमतः भावोपक्रम का क्रमशः विवेचन इस प्रकार हैं - ब्राह्मणी का अप्रशस्त भावोपक्रम - एक ब्राह्मणी थी। उसके तीन पुत्रियाँ थीं। तीनों बहुत ही विनीत और आज्ञाकारिणी थीं। ब्राह्मणी का भी उन तीनों पर बहुत प्यार था। वह चाहती थी कि पुत्रियाँ हर समय मेरे पास ही रहें। यथासमय तीनों पुत्रियाँ सयानी हो गई। ब्राह्मणी ने तीनों पुत्रियों का विवाह कर दिया। विवाह करने के बाद उसने सोचा कि मेरे तीनों दामादों की मनोवृत्ति जानकर अपनी तीनों पुत्रियों को इस प्रकार शिक्षित कर दूं कि इनका जीवन सदैव सुखी रहे। यों विचार कर जब वह अपनी बड़ी लड़की को विदा करने लगी, तब उसे एकान्त
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org