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________________ अनुयोगद्वार सूत्र ___ अपयाणं उवक्कमे अपयाणं - अंबाणं, अंबाडगाणं, इच्चाइ। सेत्तं अपओवक्कमे। सेत्तं सचित्तदव्वोवक्कमे। ____ शब्दार्थ - अपयाणं '- अपद-पद या चरण (पाँव) रहित, अंबाणं - आमों का, अंबाडगाणं - आमलकों-आँवलों का। भावार्थ - अपद उपक्रम किस प्रकार का है? अपद उपक्रम आम्र, आमलक इत्यादि से संबद्ध है। अपद उपक्रम का ऐसा निरूपण है। यह - उक्त वर्णन सचित्त द्रव्योपक्रम का है। विवेचन - इन सूत्रों में सचित्त द्रव्योपक्रम का स्वरूप व्याख्यात हुआ है। जैसा पहले विवेचन हुआ है. सचित्त का अर्थ चैतन्ययुक्त अथवा प्राणवान् है। उनका विभाजन पदों या पैरों के आधार पर किया गया है। द्विपद मुख्यतः मनुष्यों को इंगित करता है। चतुष्पद में चौपाए पशुओं का समावेश है। वृक्ष आदि वनस्पतिक जीव पदरहित हैं, अपने स्थान पर अवस्थित हैं, चलनशील नहीं है, इसलिए उनका अपद के रूप में उल्लेख हुआ है। यहाँ परिकर्म और विनाश का जो उल्लेख हुआ है, उस संबंध में ज्ञाप्य है कि - वस्तु या पदार्थ के गुण-वैशिष्ट्य, शक्ति-वैशिष्ट्य आदि की वृद्धि या विकास जिस प्रयत्न या उपाय से होता है, वह परिकर्म है। "क्रियते इति कर्मः" - जो किया जाय उसे कर्म कहा जाता है। परि-विशिष्टतापूर्वक होने वाले उद्यम का सूचक है। ___खड्ग आदि द्वारा वस्तु विशेष का नाश या घात विनाश है। 'नाश' शब्द के पहले 'वि' उपसर्ग जुड़ने से विनाश शब्द बना है। “विशेषेण नाशः विनाशः"।। (६६) अचित्त द्रव्योपक्रम से किं तं अचित्तदव्योवक्कमे? ... अचित्तदव्वोवक्कमे - खंडाईणं, गुडाईणं, मच्छंडीणं। सेत्तं अचित्तदव्वोवक्कमे। शब्दार्थ - खंडाईणं - खांड या चीनी आदि का, गुडाईणं - गुड़ आदि का, मच्छंडीणंमिश्री आदि का। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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