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________________ अनुयोगद्वार सूत्र वर्तमान, भूत और भविष्यत् - तीन पर्यायें होती हैं। भूतकालीन अथवा भविष्यकालीन पर्याय को वर्तमान में उपक्रम के रूप में निरूपित करना द्रव्योपक्रम है। (६२) सचित्त द्रव्योपक्रम से किं तं सचित्ते दव्वोवक्कमे? सचित्ते दव्वोदक्कमे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - दुप(ए)याणं १ चउप्पयाणं २ अपयाणं ३। एक्केक्के पुण दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - परिक्कमे य १ वत्थुविणासे य २। भावार्थ - सचित्त द्रव्योपक्रम किस प्रकार का है? सचित्त द्रव्योपक्रम तीन प्रकार का प्ररूपित हुआ है। जैसे - द्विपद, चतुष्पद, अपद। इनमें से प्रत्येक परिकर्म एवं वस्तु विनाश के रूप में दो-दो प्रकार का है। से किं तं दुपयाणं उवक्कमे? दुपयाणं उवक्कमे-णडाणं, णट्टाणं, जल्लाणं, मल्लाणं, मुट्टियाणं, वेलंबगाणं, कहगाणं, पवगाणं, लासगाणं, आइक्खगाणं, लंखाणं, मंखाणं, तूणइल्लाणं, तुंबवीणियाणं, का(वडि)वोयाणं, मागहाणं। सेत्तं दुपयाणं उवक्कमे। भावार्थ - द्विपद उपक्रम किस प्रकार का है? द्विपद उपक्रम के अन्तर्गत नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, वेलंबक-विदूषक, कथक, प्लवक, लासक, आख्यायक, लंख, मंख, तूणिक, तुंबवीणिक, कावड़िक एवं मागध आदि दो पैर वालों का परिकर्म एवं विनाश रूप उपक्रम द्विपद उपक्रम है। विवेचन - द्विपद उपक्रम का आशय दो पैर वाले मनुष्यों से है। उनमें सूत्रकार ने उदाहरण के रूप में जिन-जिन का उल्लेख किया है, उनका विश्लेषण इस प्रकार है - मट - अभिनय, गान एवं नाच द्वारा मनोरंजन करने वाले। मर्तक - मुख्यतः विविध भाँति के नृत्य प्रस्तुत करने वाले। जल्ल - मोटे रस्से को बांस आदि के सहारे तान कर उस पर खेल-करतब दिखाने वाले। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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