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________________ स्कन्ध के भेद ४७ ५. शासन - “शास्तीति शासनम्" - जो शासित करता है, सत्यानुप्राणित करता है मिथ्यात्व से पृथक् कर सम्यक्त्व में शासित करता है, वह शासन है। ६. आज्ञा - निर्द्वन्द्व, निर्दोष एवं सर्वथा प्रमाणयुक्त होने से जो आदेश के रूप में व्याख्यात है, जो मुक्तिमार्ग का आदेश करता है, वह आज्ञा रूप है। ७. वचन - वाणी द्वारा व्याख्यात होने से यह वचन रूप है। ८. उपदेश - उपादेय में प्रवृत्ति और हेय से निवृत्ति हेतु जो गुरुजन द्वारा उपदेश के रूप में प्रतिपादित होता है, वह उपदेश है। ६. प्रज्ञापना - 'ज्ञापयति बोधयतीति ज्ञापना - प्रकर्षेण ज्ञापयतीति प्रज्ञापना' - जो जीवादि तत्त्वों का विशेष रूप से विश्लेषण करता है, उन्हें प्रज्ञापित करता है, उसकी प्रज्ञापना संज्ञा है। १०. आगम - आप्तवचन होने से जो ज्ञान के अनादि स्रोत के रूप में चला आ रहा है, वह आगम रूप है। (४५) स्कंध के भेद से किं तं खंधे? खंधे चउव्विहे पण्णत्ते। तंजहा - णामखंधे १ ठवणाखंधे २ दव्वखंधे ३ भावखंधे ४। . भावार्थ - स्कंध किस प्रकार का है? स्कंध के चार भेद परिज्ञापित हुए हैं, वे इस प्रकार हैं - १. नाम स्कंध २. स्थापना स्कंध ३. द्रव्य स्कंध एवं ४. भाव स्कंध। (४६) णामट्ठवणाओ पुव्वभणियाणुक्कमेण भाणियव्वाओ। भावार्थ - नाम और स्थापना स्कन्ध पूर्वप्रतिपादन के अनुरूप भणनीय - कथनीय हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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