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अनुयोगद्वार सूत्र
स्वरित तथा हस्व, दीर्घ, प्लुत आदि विविध स्वरयुक्त, णाणावंजणा - क वर्ग आदि विविध व्यंजन युक्त, पज्जवा - पर्याय।
भावार्थ - विविध स्वर एवं व्यंजनयुक्त भावश्रुत के पर्यायवाची शब्द - श्रुत, सूत्र, ग्रंथ, सिद्धांत, शासन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना तथा आगम (ये दस) हैं।
श्रुत का विवेचन इस प्रकार है।
विवेचन - श्रुत के पर्यायवाची शब्दों का जो उल्लेख हुआ है, यद्यपि तत्त्वतः वे सभी एकार्थक हैं किन्तु शाब्दिक व्युत्पत्ति की दृष्टि से उनमें अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। इससे एकार्थकता बाधित नहीं होती, विश्लेषणपूर्वक स्पष्ट होती है। प्रत्येक के संबंध में यहाँ निम्नांकित रूप में ज्ञातव्य है -
१. श्रुत - वीतराग तीर्थंकर देव द्वारा अर्थ रूप में भाषित झान गणधरों आदि द्वारा श्रवण किया जाता है अथवा परंपरा से आगत तीर्थंकरोपदिष्ट ज्ञान उत्तरवर्ती जिज्ञासु जीवों द्वारा उपदेष्टा गुरु से सुना जाता है, इसलिए वह श्रुत है। ज्ञान की इस शाश्वत परंपरा का मुख्य आधार श्रवण ही है। वैदिक परंपरा में भी वेदों को इसलिए श्रुति कहा जाता है।
२. सूत्र - संक्षिप्ततम शब्दावली में विस्तृत अर्थ को निबद्ध करना सूत्र है, कहा गया हैअल्पाक्षरमसंदिग्धं सारषद्विश्वतोमुखम्। अस्तोममनवद्यं च सूत्रं सूत्रः विदोविदुः॥
- जो अल्प अक्षरों से युक्त, संदेह रहित, सार युक्त, सर्वव्यापी, आशय युक्त, सर्वथा संगत तथा निर्दोष हो, ऐसी शब्द संरचनामय हो, उसे सूत्र कहा जाता है।
आगम रूप श्रुत ज्ञान में ये सभी विशेषताएँ हैं। वह सूत्रात्मक शैली में प्रस्तुत है।
३. ग्रंथ - शब्द के रूप में संग्रथित होने से इसे ग्रंथ कहा गया है। जैसा कि प्राचीन ग्रन्थों (विशेषावश्यक भाष्य आदि) में कहा गया है -
"अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं"
- तीर्थंकर भगवान् अर्थ रूप में उपदेश करते हैं, गणधर कुशलतापूर्वक सूत्र रूप में उसे संग्राथेत करते हैं। संग्रथन के कारण इनकी ग्रंथ संज्ञा है।
४. सिद्धांत - "सिद्धः अंतो येषां ते सिद्धान्ताः" - जिनका परिणाम या अभिप्राय सिद्ध या सर्वथा सुप्रमाणित हो, उन्हें सिद्धांत कहा जाता है। श्रुत ज्ञान इस वैशिष्ट्य से युक्त होने के कारण सिद्धांत रूप है।
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