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श्रुत के पर्याय
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शब्दार्थ - उप्पण्ण - उत्पन्न, धरेहिं - धारक, पच्चुपण्ण - प्रत्युत्पन्न, अणागय - अनागत-भविष्य, सव्वण्णूहि - सर्वज्ञों द्वारा, सव्वदरिसीहिं - सर्वदर्शियों द्वारा, तिलुक्कवहियआनंद अश्रु रूप दृष्टि से त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा सहर्ष अवलोकित (तीनों लोकों में विद्यमान), महिय - महिमा युक्त, पूइएहिं - पूजित, अप्पडिहय - अप्रतिहत - बाधा रहित, पणीतं - प्रणीत-रचित।
भावार्थ - लोकोत्तरिक नोआगमतः भावश्रुत का कैसा स्वरूप है?
जिन्हें केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न हुआ, वर्तमान, भूत एवं भविष्य के जो दृष्टा हैं, तीनों लोकों के जीवों द्वारा अवलोकित, सभी जीवों द्वारा महिमान्वित - महिमा मण्डित रूप में स्वीकृत, पूजित, अप्रतिहत ज्ञान के धारक, तीर्थंकर भगवंतों द्वारा समुपदिष्ट, आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासक दशांग, अन्तकृ दशांग, अनुत्तरोपपातिकदशांग, प्रश्नध्याकरण, विपाकश्रुत एवं दृष्टिवाद के रूप में द्वादशांग नोआगमतः भावश्रुत हैं। .
नोआगमतः भावश्रुत का ऐसा स्वरूप है।
विवेचन - सूत्र में नोआगम की अपेक्षा लोकोत्तरिक भावश्रुत का स्वरूप बतलाया है। अहँत् भगवन्तों द्वारा प्रणीत गणिपिटक में उपयोगरूप परिणाम होने से भावश्रुतता है और यह उपयोग रूप परिणाम चरणगुण-चारित्रगुण से युक्त है तो वह नोआगम से भावश्रुत है। क्योंकि चरणगुण क्रिया रूप है और क्रिया आगम नहीं होती है। इस प्रकार यहाँ 'नो' शब्द एकदेशनिषेधक रूप में प्रयुक्त हुआ है।
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श्वत के पर्याय तस्स णं इमे एगट्ठिया णाणाघोसा णाणावंजणा णामधेजा भवंति, तंजहा - गाहा- सुयसुत्तगंथसिद्धंतसासणे, आणवयण उवएसे।
पण्णवण आगमे वि य, एगट्ठा पजवा सुत्ते॥१॥ सेत्तं सुयं। शब्दार्थ - एगट्ठिया - एकार्थक-समान अर्थ युक्त, णाणाघोसा - उदात्त, अनुदात्त,
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