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अनुयोगद्वार सूत्र
हुआ है, वह सांख्य विषयक विविध ग्रंथों का सूचन है। महर्षि कपिल सांख्य दर्शन के प्रणेता माने जाते हैं। उन द्वारा रचित कपिल सूत्र सांख्य दर्शन का प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है। तत्पश्चात् सांख्य दर्शन पर षष्ठितंत्र की रचना हुई। षष्ठि शब्द साठ का बोधक है। संभव है, उसमें साठ प्रकरण रहे हों। उस पर माठर नामक आचार्य ने टीका या वृत्ति की रचना की, जिसे माठर वृत्ति कहा जाता है। 'कनकसत्तरी' सांख्यकारिका का नाम है। सप्तति का अर्थ सत्तर है। इसमें प्रामाणिक रूप में सत्तर कारिकाएँ हैं। ईश्वरकृष्ण द्वारा रचित यह ग्रंथ सांख्यशास्त्र का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रंथ है।
छहों दर्शनों के महान् टीकाकार वाचस्पति मिश्र की इस पर सांख्यतत्त्व कौमुदी नामक विस्तृत टीका है, जिसका दार्शनिक जगत् में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। विविध शास्त्रों के संबंध में इस सूत्र से जो ऐतिहासिक इंगित प्राप्त होते हैं, वे अनुसंधान की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि आगमकाल में किसी न किसी रूप में इन शास्त्रों का अस्तित्व था। ___ ये सभी ग्रन्थ भौतिक जगत् में उपयोगी होने से एवं अलग-अलग मतों की मान्यताओं को बताने वाले होने से इन्हें लौकिक भाव श्रुत में गिना गया है। आत्मा की दृष्टि से (आत्मविशुद्धि में) उपयोगी नहीं होने से एवं अज्ञानियों के द्वारा रचित होने से बुद्धिमानों एवं आत्मसाधकों के लिए इनका वांचन, मनन, आचरण करना किंचित् मात्र भी उपादेय नहीं है।
(४३)
लोकोत्तरिक भावनुत से किं तं लोउत्तरियं णोआगमओ भावसुयं?
लोउत्तरियं णोआगमओ भावसुयं- जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं, उप्पण्णणाणदंसणधरेहिं, तीयपच्चुप्पण्णमणागय-जाणएहिं, सव्वण्णू हिं सव्वदरिसीहिं, तिलुक्कवहियमहियपूइएहिं, अप्पडिहयवर-णाणदंसणधरेहिं, पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं। तंजहा - आयारो १ सूयगडो २ ठाणं ३ समवाओ ४ विवाहपण्णत्ती ५ णायाधम्मकहाओ ६ उवासगदसाओ ७ अंतगडदसाओ ८ अणुत्तरोववाइयदसाओ ६ पण्हावागरणाई १० विवागसुयं ११ दिट्ठिवाओ य १२। सेत्तं लोउत्तरियं णोआगमओ भावसुयं। सेत्तं णोआगमओ भावसुयं। सेत्तं भावसुयं।
आ भावसुय?
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