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________________ लौकिक भावश्रुत भावार्थ - नो आगमतः भावश्रुत का क्या स्वरूप है ? नो आगमतः भावश्रुत लौकिक और लोकोत्तर के रूप में दो प्रकार का बतलाया गया है। (४२) लौकिक भावश्रुत से किं तं लोइयं णोआगमओ भावसुयं ? लोइयं णोआगमओ भावसुयं जं इमं अण्णाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं तंजहा - भारहं, रामायणं, भीमासुरुक्कं, कोडिल्लयं, घोडयमुहं, सगडभद्दियाउ, कप्पासियं, णागसुहुमं, कणगसत्तरी, वेसियं वइसेसियं, बुद्धसासणं, काविलं, लोगायतं, सट्ठियंतं, माढरं पुराणं वागरणं णाडगाई, अहवा बावत्तरिकलाओ, चत्तरि वेया संगोवंगा । सेत्तं लोइयं णोआगमओ भावसुयं । - शब्दार्थ अण्णाणिएहिं - अज्ञानियों द्वारा, मिच्छदिट्ठीहिं - मिथ्यादृष्टियों द्वारा, सच्छंदबुद्धि मइविंगप्पियं - स्वच्छन्द बुद्धि-मति द्वारा विकल्पित, कोडिल्लयं - कौटिल्यचाणक्य रचित शास्त्र, घोडयमुहं घोटकमुख - शालिहोत्र संज्ञक अश्वशास्त्र, सगडभद्दियाउ गाड़े - गाड़ियों से संबंधित ग्रंथ, णागसुहुमं - नागसूक्ष्म सर्पविद्या - सर्प विष नाश विषयक उपाय आदि से संबंधित ग्रंथ, कणगसत्तरी कनकसप्तति-सांख्यकारिका, वेसियं - श्रृंगारशास्त्र, वइसेसियं - वैशेषिक' सूत्र, बुद्धसासणं - बौद्ध शास्त्र, काविलं - कपिलसूत्र, लोगायतं लोकायत - चार्वाक, सट्ठियंतं - षष्ठितंत्र- प्राचीन सांख्य, माढरं माठर वृत्ति ( षष्ठितंत्र पर ), वागरणं नाटकादि-नाट्य शास्त्र आदि, वेया - वेद, संगोवंगा सांगोपांग अंग उपांग सहित । गाई व्याकरण, - Jain Education International - - ४३ - For Personal & Private Use Only - भावार्थ - नो आगमतः लौकिक भावश्रुत किस प्रकार का है ? अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा, स्वच्छंद - निरंकुश बुद्धि एवं प्रज्ञा से रचित शास्त्र लौकिक नोआगमतः भावश्रुत हैं। रामायण, महाभारत तथा अंगोपांगयुक्त वेद, सांख्य, वैशेषिक आदि दर्शन, पुराण, शालिहोत्र आदि रचित अश्वशास्त्र विषयक ग्रंथ इत्यादि शास्त्र नोआगमतः लौकिक भाव है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में कनकसंत्तरी, षष्ठितंत्र, माठरवृत्ति, कपिलसूत्र का जो प्रयोग - www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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