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अनुयोगद्वार सूत्र
विवेचन - प्राचीन ग्रंथों में वल्क-वृक्षों की छाल के या उससे निकले तन्तुओं से बने वस्त्रों का उल्लेख आता है। उन्हें वल्कल कहा जाता था। वनवासी, तपस्वी, ऋषि, मुनि आदि उन्हें धारण करते थे।
(३६)
भावभुत से किं तं भावसुयं? भावसुयं दुविहं पण्णत्तं । तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २।. भावार्थ - भावश्रुत का क्या स्वरूप है? भावश्रुत दो प्रकार का बतलाया गया है - आगमतः तथा नोआगमतः। .. . (४०)
आगमतः भावभुत से किं तं आगमओ भावसुयं? आगमओ भावसुयं जाणए उवउत्ते। सेत्तं आगमओ भावसुयं। भावार्थ - आगमतः भावश्रुत का कैसा स्वरूप है? आगमतः भावश्रुत ज्ञाता और उपयोग रूप है। इस प्रकार आगमतः भावश्रुत का स्वरूप है।
विवेचन - जब श्रुत का पद अनुभव अथवा उपयोग से युक्त होता है तब वह भावश्रुत संज्ञा से अभिहित किया जाता है। जो साधु भावश्रुत युक्त होते हैं, अभेदोपचार से उन्हें भी भावश्रुत कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है - उपयोग रूप परिणाम के होने के कारण उसमें भावत्व है। अर्थज्ञान के सद्भाव के कारण वह आगमतः है।
(४१)
नो आगमतः भावश्चत से किं तं णोआगमओ भावसुयं? णोआगमओ भावसुयं दुविहं पण्णत्तं। तंजहा - लोइयं १ लोगुत्तरियं च २।
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