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ज्ञ - शरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत
वालयं पंचविहं पण्णत्तं । तंजहा - उण्णिए १ उट्टिए २ मियलोमिए ३ कोतवे ४ किट्टिसे ५ ।
भावार्थ
बालज सूत्र का कैसा स्वरूप है ?
बालज सूत्र और्णिक, औष्ट्रिक, मृगलौमिक, कौतव तथा किट्टिस के रूप में पाँच प्रकार का है।
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विवेचन - ऊर्ण से संबद्ध सूत्र को और्णिक कहा गया है।
“ऊर्णस्येदमौर्णिकम्” - के अनुसार ऊन से बने सूत को और्णिक कहा जाता है। ऊन प्रायः भेड़ के बालों से प्राप्त होती है। उसके भी अनेक प्रकार होते हैं। ऊन के सूत से बने वस्त्र अत्यंत गर्म होते हैं। यही कारण है, प्राचीन काल से सर्दी में प्रायः ऊनी वस्त्रों को धारण करने का प्रचलन रहा है।
ऊँट के बालों से निर्मित धागा औष्ट्रिक कहा जाता है। राजस्थान और गुजरात के रेगिस्तानी भागों में जहाँ ऊँट अधिक उपयोग में लिए जाते हैं, इस धागे से बने वस्त्र प्रयोग में आते हैं।
हिरण के बालों से बने सूत्र मृगलौमिक कहे जाते हैं ।
कौवे - कुतुपिक - कुतुप या कुश आदि घास से बना सूत कौतव कहा जाता है।
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किट्ट का अर्थ सूअर है। सूअर के बालों से बना सूत किट्टिस शब्द द्वारा अभिहित हुआ है। अथवा इन और्णिक आदि सूत्रों को बनाते समय इधर-उधर बिखरे बालों का नाम किट्टिस है। इनसे निर्मित अथवा और्णिक आदि सूत को दुहरा - तिहरा करके बनाया गया सूत अथवा घोड़ों आदि के बालों से बना सूत किट्टिस कहलाता है।
से किं तं वागयं ?
वागयं सणमाइ । सेत्तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तं दव्वसुयं । सेत्तं णोआगमओ दव्वसुयं । सेत्तं दव्वसुयं ।
शब्दार्थ - सणमाई - पटसन ( जूट) आदि से निष्पन्न ।
भावार्थ वल्कज का क्या स्वरूप है ?
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पटसन आदि से निर्मित सूत्र वल्कज कहा जाता है। यह ज्ञशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य श्रुत का वर्णन है। इस प्रकार नो आगमतः द्रव्यश्रुत का वर्णन परिसमाप्त होता है।
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