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अनुयोगद्वार सूत्र
बोंडयं कप्पासमाइ। भावार्थ - बोंडज किसे कहा जाता है? बोंड-कपास या रुई से निर्मित सूत को बोंडज कहा जाता है। से किं तं कीडयं?
कीडयं पंचविहं पण्णत्तं। तंजहा - पट्टे १ मलए २ अंसुए ३ चीणंसुए ४ किमिरागे ५।
भावार्थ - कीटज कैसा होता है? कीटज पट्ट, मलय, अंशुक, चीनांशुक तथा कृमिराग के रूप में पाँच प्रकार का आख्यात
हुआ है।
विवेचन - कीटज सूत्र का संबंध रेशमी धागों से हैं। विविध प्रकार के कीड़ों की लार से बनने वाले रेशमी धागे यहाँ अभिहित हुए हैं। कीटों की गुण निष्पन्न भिन्नता के अनुसार ये पाँच प्रकार के हैं। उनसे बनने वाले वस्त्र ही पट्ट, मलय आदि के नाम से प्रसिद्ध है। ___ यहाँ प्रयुक्त 'चीणंसुए' - चीनांशुक शब्द एक विशेष आशय लिए हुए हैं। प्राकृत और संस्कृत में उत्तम कोटि के रेशमी वस्त्रों के लिए इसका प्रयोग होता रहा है। चीन + अंशुक के मेल से यह बना है। इससे यह प्रकट होता है कि चीन में होने वाले विशेष किस्म के रेशम के कीड़ों से यह बनता रहा है। यह भी प्रकट होता है कि वे कीड़े चीन में बहुलता से होते रहे हैं। चीन में बने रेशमी वस्त्र भारत में विशेष रूप से आते रहे हैं। इसलिए सामान्य रेशम के लिए चीनांशुक शब्द प्रचलित हो गया। संस्कृत के अनेक काव्यों, नाटकों आदि में रेशम के लिए चीनांशुक शब्द का प्रयोग होता रहा है। यह भी इतिहास से सिद्ध है, प्राचीन काल में चीन से ही रेशमी वस्त्रों का प्रायः निर्यात होता था।
कृमिरागसूत्र के विषय में ऐसा सुना जाता है कि किन्हीं क्षेत्रविशेषों में मनुष्यादि का रक्त बर्तन में भरकर उसके मुख को छिद्रों वाले ढक्कन से ढंक देते हैं। उसमें बहुत से लाल रंग के कृमि-कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं। वे कृमि छिद्रों से निकल कर बाहर आसपास के प्रदेश में उड़ते हुए अपनी लार छोड़ते हैं। इस लार को इकट्ठा करके जो सूत बनाया जाता है, वह कृमिरागसूत्र कहलाता है। लाल रंग के कृमियों से उत्पन्न होने के कारण इस सूत का रंग भी लाल होता है।
से किं तं वालयं?
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