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ज्ञ-शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत
३६.
भावार्थ - ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत का क्या स्वरूप है?
पत्र-ताड़पत्र, भोजपत्र, कागज आदि पर अथवा पुस्तक रूप में परिणित पत्रों पर लिखित श्रुत ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत है।
विवेचन - विविध प्रकार के पत्र पुस्तक आदि पर लिखित 'श्रुत' भावश्रुत का कारण है। इसलिए वह द्रव्यश्रुत है। उपर्युक्त दोनों से भिन्न होने के कारण उनसे व्यतिरिक्त कहा गया है। व्यतिरिक्त शब्द सर्वथा भिन्नत्व का द्योतक है।
पत्र आदि पर लिखित श्रुत उपयोग शून्य हैं क्योंकि पत्रादि पदार्थ चेतना विरहित हैं। इसलिए उसमें द्रव्यत्व है, भावत्व नहीं है। आगमता का आधार आत्मा, शरीर एवं शब्द समवाय है। पुस्तक, पत्र आदि में इनका वास्तविक अस्तित्व न होने से, दूसरे शब्दों में इनके चेतनाराहित्य के कारण इनमें नोआगमता है।
विशेष - मागधी प्राकृत के सिवाय अर्द्धमागधी, शौरसेनी, पैशाची और महाराष्ट्री आदि प्राकृतों में तालव्य, मूर्धन्य और दन्त्य - तीनों सकारों के लिए केवल दन्त्य सकार का ही प्रयोग होता है। इसलिए दन्त्य सकार युक्त प्राकृत शब्द की छाया संस्कृत में तीनों सकारों के रूप में की जा सकती है। यही कारण है, जहाँ 'सुयं' की छाया 'श्रुत' की गई है, वहाँ उसके अतिरिक्त 'सूत्र' (सूत) भी हो सकती है। सूत्र का अर्थ सूत या धागा भी है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए यहाँ प्रकारान्तर से विवेचन किया गया है। - अहवा जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तं दव्वसुयं पंचविहं पण्णत्तं। तंजहा - अंडयं १ बोंडयं २ कीडयं ३ वालयं ४ वागयं ५।
शब्दार्थ - अहवा - अथवा।
भावार्थ - अथवा सूत्र-सूत (धागा), अंडज, बोंडज, कीटज, बालज और वल्कज के रूप में ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत पाँच प्रकार का कहा गया है।
से किं तं अंडयं? अंडयं हंसगम्भाइ। भावार्थ - अंडज किस प्रकार का होता है? हंस गर्भादि से निष्पन्न सूत्र को अंडज कहा जाता है। . से किं तं बोंडयं?
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