________________
३६
अनुयोगद्वार सूत्र
(३३)
द्रव्य श्रुत के प्रकार से किं तं दव्वसुयं? दव्वसुयं दुविहं पण्णत्तं तंजहा - आगमओ य १ णो आगमओ य । भावार्थ - द्रव्यश्रुत का कैसा स्वरूप है? द्रव्यश्रुत दो प्रकार का प्रतिपादित हुआ है - १. आगमतः २. नो आगमतः।
(३४) •आगमतः द्रव्य श्रुत से किं तं आगमओ दव्वसुयं? . आगमओ दव्वसुयं - जस्स णं 'सुए' त्ति पयं सिक्खियं, ठियं, जियं जाव णो अणुप्पेहाए। कम्हा? 'अणुवओगो' दव्वमिति कट्ट। णेगमस्स णं एगो अणुवउत्तो आगमओ एगं दव्वसुयं जाव तिण्हं सद्दणयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थु। कम्हा? जइ जाणए अणुवउत्ते ण भवइ, जइ अणुवउत्ते, जाणए ण भवइ, तम्हा णत्थि आगमओ दव्वसुयं। सेत्तं आगमओ दव्वसुयं।
भावार्थ - आगमतः द्रव्यश्रुत किस प्रकार का है?
जिस (साधु) ने 'श्रुत' पद को स्थिर, जित, मित, परिजित के रूप में सीखा है यावत् अर्थ की अनुप्रेक्षा-अनुचिंतना नहीं की है, वह आगमतः द्रव्यश्रुत है। क्योंकि “अनुपयोगो द्रव्यम्” - ऐसा सिद्धान्त है। नैगम नय के अनुसार जो एक उपयोग रहित है, वह एक द्रव्यश्रुत है यावत् इसी के अनुरूप तीनों शब्द नयों के अनुसार यह ज्ञातव्य है, जो अनुपयोग रहित होता है, वह अवस्तु रूप है। यह किस प्रकार है - एक, जानता है किन्तु अनुपयोग रहित नहीं होता। दूसरा, जो उपयोग रहित है किन्तु ज्ञाता है। इसलिए पहला आगमतः द्रव्यश्रुत नहीं है (जबकि दूसरा आगमतः द्रव्यश्रुत है)। यह आगमतः द्रव्यश्रुत का स्वरूप है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org