SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञ शरीर द्रव्यश्रुत (३५) नोआगमतः द्रव्यश्चत से किं तं णोआगमओ दव्वसुयं? णोआगमओ दव्वसुयं तिविहं पण्णत्तं। तंजहा - जाणयसरीरदव्वसुयं १ भवियसरीरदव्वसुयं २ जाणयसरीरभविय-सरीरवइरित्तं दव्वसुयं ३। भावार्थ - नोआगमतः द्रव्यश्रुत का कैसा स्वरूप है? नोआगमतः द्रव्यश्रुत तीन प्रकार का परिज्ञापित हुआ है - १. ज्ञ शरीर द्रव्यश्रुत २. भव्य शरीर द्रव्यश्रुत ३. ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त-द्रव्यश्रुत। (३६) ज्ञ शरीर द्रव्यश्रुत से किं तं जाणयसरीरदव्वसुयं? - जाणयसरीरदव्वसुयं - 'सुय' त्ति पयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुयचावियचत्तदेहं जाव पासित्ता णं कोई भणेजा - अहो! ण इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिटेणं भावेणं 'सुय' त्ति पयं आधवियं जाव अयं घयकुंभे आसी। सेत्तं जाणयसरीरदव्वसुर्य। भावार्थ - ज्ञ शरीर द्रव्यश्रुत का कैसा स्वरूप है? जिसने श्रुत पद के अधिकार को जाना है, उसके चेतना रहित, प्राणशून्य, अनशन द्वारा मृत देह को शय्या-संस्तारकगत देखकर कोई कहे - अहो! दैहिक पुद्गल रूप शरीर द्वारा जिनेन्द्र देव समुपदिष्ट श्रुत पद को सम्यक् गृहीत किया - उसका अध्ययन किया, उसे परिज्ञापित किया - औरों को समझाया, उसकी प्ररूपणा की, उसे दर्शित, निदर्शित एवं उपदर्शित किया - विविध रूप में उसे प्रज्ञप्त किया। (प्रश्न) क्या ऐसा कोई दृष्टान्त है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy