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अनुयोगद्वार सूत्र
१२. अयुक्त - जो वचन युक्ति, उपपत्ति से सर्वथा असंगत हो, उसे अयुक्त कहा जाता है। जैसे - 'वन्ध्यापुत्र, गगन पुष्प लेकर सूंघने लगा।
१३. क्रमभिन्न - जिसमें अनुक्रम से कथन न हो। जैसे - संवर, मोक्ष, निर्जरा, . आस्रव, अजीव, पाप, जीव, पुण्य।
१४. वचनभिन्न - जहाँ विशेषण - विशेष्य एवं क्रिया आदि में वचन की विसंगति या भिन्नता हो। जैसे - वृक्षाः पुष्पितः।।
१५. विभक्तिभिन्न - जहाँ वाक्य में विभक्तियों की विसंगति एवं विपरीतता हो। जैसे - "व्यायाम कुरु" के स्थान पर “व्यायामः कुरु।"
१६. लिंग - वाक्य के विशेषण - विशेष्य आदि में लिंगात्मक विसंगति - विपरीतता होना, लिंगदोष है। जैसे - "अयं कन्या"।
१७. अनभिहित - अपने सिद्धान्त में जो पदार्थ गृहीत नहीं हैं, उनका उपदेश करना। जैसे जैन दर्शन के विवेचन के संदर्भ में ईश्वर द्वारा सृष्टि की रचना करने का विधान करना।
१८. अप - छन्द विशेष के स्थान पर तद् भिन्न छन्द का उच्चारण करना। जैसे इन्द्रवज्रा पद के स्थान पर वसन्ततिलका के पद का उच्चारण करना। ___१६. स्वभावहीन - जिस पदार्थ का जो स्वभाव हो, उससे विपरीत उच्चारण करना। जैसे - आकाश मूर्त है।
२०. व्यवहित - जिस का कथन शुरु किया हो, उसे छोड़ कर किसी दूसरे को ले लिया जाय, उसकी व्याख्या करने के बाद फिर पहले को लिया जाय, यों दोनों के मध्य व्यवधान आ जाता है।
११. काल - भूतकाल के वचन का वर्तमान काल में उच्चारण करना। "सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया" के स्थान पर “सिकंदर भारत पर आक्रमण कर रहा है।"
२९. यति - अनुपयुक्त स्थान पर विराम लेना अथवा विराम बिल्कुल भी न लेना। २३. छवि - अनुचित, असंगत, सामंजस्य रहित अलंकार का प्रयोग करना। २४. समयविरुद्ध - स्वसिद्धान्त से विपरीत प्रतिपादन करना। २५. वचनमात्र - निरर्थक, निर्हेतुक वचनों का उच्चारण करना।
२६. अर्थापत्ति - जिस स्थान पर अर्थापत्ति के कारण अनिष्ट अर्थ की प्राप्ति हो। जैसे - देवदत्त मोटा है, दिन में नहीं खाता अर्थात् वह रात्रि में खाता है।
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