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________________ अनुगम विवेचन - सूत्रस्पर्शिक नियुक्त्यनुगम २७. अ समास जहाँ पर समासविधि प्राप्त हो, समास करणीय हो, वहाँ समास न करना । जहाँ समास की प्राप्ति न हो, तद्भिन्न समास करना । २८. उपमा हीन, असंगत, विपरीत उपमा देना । मेरू सर्षप जैसा है। २६. रूपक निरूपणीय मूल वस्तु की उपेक्षा कर उसके अवयवों का निरूपण करना । जैसे - पर्वत के निरूपण को छोड़ कर उसके शिखर, उपत्यका, अधीत्यका का वर्णन करना । ३०. अवयव निर्दिष्ट पदों की जहाँ एक वाचकता न हो। ३१. पदार्थ वस्तु के पर्याय को एक पृथक् पदार्थ मानना । ३२. संधि - जहाँ संधि होनी चाहिए वहाँ न करना अथवा नियम विरुद्ध करना । ३. पदार्थ ४. पदविग्रह विग्रह है । जैसे अर्थों के अभिगम की विधि में प्रयुक्त संहिता आदि का विश्लेषण इस प्रकार है, जिनका इस सूत्र के अन्तर्गत गाथा में उल्लेख हुआ है . - १. संहिता - अस्खलित रूप में पदों का उच्चारण करना । २. पद - सुबन्तं एवं तिङ्न्त (सुप्तिङ्गन्तं पदम् सुबन्तं तिङ्गन्तं च पद संज्ञं स्यात्- ) के • अनुसार सु औजस, तिप तस् झि के अनुसार स्वरान्त हसन्त आदि संज्ञापद अस्मद् - युष्मद् आदि सर्वनाम पद परस्मैपदी, आत्मनेपदी आदि धातुनिष्पन्न क्रिया पद 'पद' कहलाते हैं। पद का अर्थ करना पदार्थ कहलाता है। - - - Jain Education International - - संयुक्त पदों का प्रकृति - प्रत्ययात्मक विभाग रूप विस्तार करना पद 'नरेशः ' का पद विग्रह 'नराणाम् ईशः ' है । ५. चालना प्रश्नोत्तरों द्वारा सूत्र एवं अर्थ की पुष्टि करना चालना है। ६. प्रसिद्धि - सूत्र एवं उसके अर्थ का युक्ति, न्याय एवं तर्क पूर्वक जैसा वह है, उसी प्रकार उसे स्थापित एवं ख्यापित करना । - - - - ५०३ शंका सूत्र व्याख्यान के इस षड्विध लक्षण के संबंध में प्रश्न उपस्थित होता है कि इसमें कितना सूत्रानुगम का विषय है, कितना सूत्रालापक का तथा कितना सूत्रस्पर्शिक नियुक्त्यनुगम का विषय है ? तथा नय का क्या विषय है ? समाधान - इसका समाधान यह है कि पदच्छेद सहित सूत्र का कथन करते सूत्रानुगम कृतार्थ हो जाता है, अर्थात् सूत्रानुगम का विषय तो इतना ही है कि वह पदच्छेदयुक्त सूत्र का उच्चारण करे। सूत्रोच्चारण करके उसका पदच्छेद करना सूत्रानुगम का कार्य है । सूत्रानुगम जब यह कार्य कर चुकता है, तब सूत्रालापक निक्षेप का यह कार्य होता है कि वह सूत्रालापकों को नाम, स्थापना आदि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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