________________
२६
अनुयोगद्वार सूत्र
पुप्फ - पुष्प, मल्ल - माला, गंध - सुगंधित पदार्थ, तंबोल - तांबूल-पान, वत्थ - वस्त्र, रायकुलं - राजकुल, देवकुलं - देवायतन, आराम - बगीचा, उज्जाण - उद्यान, सभं - सभा, पवं - प्रपा-प्याऊ, तओ पच्छा - उसके पश्चात्। ___भावार्थ - राजा, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशाली विशिष्टजन, राजसम्मानित पुरुष, श्रेष्ठी आदि रात्रि व्यतीत हो जाने पर लाल अशोक वृक्ष, पलाश के पुष्प, तोते की चोंच, धुंघची के आधे लाल भाग के सदृश अरुणिमायुक्त सूर्य के उदित होने पर, सरोवरों में कमलों के खिल जाने पर, यों प्रातःकाल हो जाने पर मुख शुद्धि, दंतप्रक्षालन, तेल मर्दन, केश प्रसाधन, मंगल हेतु श्वेत सरसों, दूर्वा प्रक्षेपण, दर्पण में मुख दर्शन, धूप, पुष्प, तथा माल्योपचार, सुगंधित पदार्थ एवं तांबूल सेवन, सुगंधित वस्त्र परिधान आदि धारण कर राजकुल, राजदरबार, देवायतन, बगीचे, उद्यान, सभा तथा प्रपा आदि में जाते हैं। यह लौकिक द्रव्यावश्यक है। ___ विवेचन - इस सूत्र में जिन कार्यों का वर्णन हुआ है, वे लौकिक दृष्टि से आवश्यक कर्मोपचार माने जाते हैं। लौकिक दृष्टि से उन्हें पवित्र या उत्तम भी कहा जाता है। किन्तु मोक्षोपयोगिता के अभाव में वे भाव आवश्यक की श्रेणी में नहीं आते। उनमें आध्यात्मिक उत्कर्ष का अभाव रहता है। किन्तु वे लौकिक दृष्टि से आवश्यक कहे और माने जाते हैं। इस कथन की दृष्टि से ये द्रव्यावश्यक हैं।
(२०) कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक से किं तं कुप्पावयणियं दवावस्सयं?
कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं - जे इमे चरगचीरिगचम्मखंडियभिक्खोंडपंडुरंग गोयम गोव्वइयगिहिधम्मधम्मचिंतग अविरुद्धविरुद्धवुद्धसावगपभिइओ पासंडत्था कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलंते, इंदस्स वा, खंदस्स वा, रुहस्स वा, सिवस्स वा, वेसमणस्स वा, देवस्स वा, णागस्स वा, जक्खस्स वा, भूयस्स वा, मुगुदस्स वा, अजाए ४ वा, दुग्गाए वा, कोदृकिरियाए वा, उवलेवण
ॐ भरहसमए जेण कइवया सावया पच्छा बंभणा जाया तेणं बंभणा वुडसावगत्ति बुच्चंति। x देवीणाममिमं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org