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युक्ता संख्यात
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पुनः पूर्वोक्त रीति से अनवस्थित शलाका भरने पर शलाका पल्य को उठावे। खाली करके पुनः एक सर्षप प्रतिशलाका में डाले, एवं पूर्वोक्त रीति से तीनों पल्य भरने पर प्रतिशलाका को उठावे- खाली करके एक 'महाशलाका' महाशलाका पल्य में डाले एवं प्रथम से दूसरे को, दूसरे से तीसरे को, तीसरे से चौथे को भरे। चौथा भर जाने पर फिर पूर्वोक्त रीति से तीसरे, दूसरे
और प्रथम को भर देना, चारों पल्य भर देने पर चौथे पल्य को नहीं उठाना। इन चारों पल्य के सर्षप और तीनों पल्य के जरिये जो द्वीप समुद्रों में व्याप्त सर्षप हैं उन सब को इकट्ठा करने से एक सर्षप अधिक उत्कृष्ट संख्याता है। अर्थात् उस सम्पूर्ण राशि में से एक सर्षप कम करने से उत्कृष्ट संख्याता होते हैं और एक सर्षप कम नहीं करे तो 'जघन्य परित्त असंख्याता' होते हैं। [यह उत्कृष्ट संख्याता इस प्रकार से ही कहे जाते हैं क्योंकि यह राशि शीर्ष पहेलिका (गिनती की संख्याओं में सबसे अंतिम संख्या - इसके बाद तो औपमिक राशियें कही जाती हैं) रूप . राशि से भी अतिबहूसमतिक्रान्त (बहुत आगे जाने पर आने वाली) है, अतः प्रकारान्तर से नहीं कही जा सकती है।]
उक्कोसयं परित्तासंखेजयं केवइयं होइ? . जहण्णयं परित्तासंखेजयं जहण्णयं परित्तासंखेजयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसं परित्तासंखेजयं होइ। अहवा जहण्णयं जुत्तासंखेजयं रूवूणं उक्कोसयं परित्ता संखेजयं होइ।
शब्दार्थ - रूवूणो - एक कम - एक को कम करने पर। भावार्थ - उत्कृष्ट परित्ता संख्यात कितना - कियत् प्रमाण होता है?
जघन्य परित्ता संख्यात का जघन्य परित्ता संख्यात से गुणन करके उसमें से एक कम कर देने पर उत्कृष्ट परित्ता संख्यात होता है। अथवा एक कम जघन्य युक्तासंख्यात जितना एक उत्कृष्ट परित्ता संख्यात होता है।
युक्ता संख्यात । जहण्णयं जुत्तासंखेजयं केवइयं होइ?
जहण्णयपरित्तासंखेजयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं जुत्तासंखेजयं होइ। अहवा उक्कोसए परित्तासंखेजए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं
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