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अनुयोगद्वार सूत्र
आवर्त्तन आदि क्रियाएँ तथा वंदना सूत्र आदि आगम का उच्चारण करते हुए सर्वथा जो आवश्यक किया जाता है, वह एकदेशीय प्रतिषेधमूलक नो आगम द्रव्यावश्यक में परिगणित है। प्रकृत सूत्र में आए तीनों भेद इसी से संबद्ध हैं।
(१६) नोआगम-ज्ञ-शरीर-द्रव्यावश्यक से किं तं जाणयसरीरदव्वावस्सयं?
जाणयसरीरदव्वावस्सयं - 'आवस्सए' ति पयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुयचावियचत्तदेहं, जीवविप्पजढं, सिजागयं वा, संथारगयं वा, णिसीहियागयं वा, सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता णं कोई भणे(वए)ज्जा - अहो! णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्टेणं भावेणं 'आवस्सए' त्ति पयं आघवियं, पण्णवियं, परूवियं, दंसियं, णिदंसियं, उवदंसियं। जहा को दिटुंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी। से तं जाणयसरीरदव्वावस्सयं। ,
शब्दार्थ - पयत्थाहिगार - पद अधिकार, ववगय - व्यपगत - चैतन्य रहित, चुयचाविय - च्युत-च्यावित - आयुष्य के समाप्त हो जाने से श्वासोच्छ्वास आदि दशविध प्राणशून्य, जीवविप्पजढं - जीव विप्र जड़ - प्राण चले जाने से जड़त्व प्राप्त, चत्तदेहं - त्यक्तदेह - आहारादि परिणतिजनित दैहिक क्रिया विवर्जित, सेज्जागयं - शैय्यास्थित, संथारगयंसंस्तारकस्थित, णिसीहियागयं - शव परिस्थापनभूमि, सिद्धसिलातलगयं - सिद्धशिलातलगत, भणेज्जा - कथन योग्य, इमेणं - इस, सरीरसमुस्सएणं - शरीर समुच्छ्य - दैहिक पुद्गल समुच्चय रूप, जिणदिटेणं - जिनेन्द्र देव द्वारा समुपदिष्ट, आपवियं - आग्राहित-सम्यक् ग्रहीत, पण्णवियं- प्रज्ञप्त, परूवियं - प्ररूपित, वंसियं - दर्शित, णिदंसियं - निदर्शित, उवदंसियं - उपदर्शित, जहा - जैसे, को - कौन, दिटुंतो - दृष्टांत, महुकुंभे - मधुकुंभ - शहद का घड़ा, आसी - था, घयकुंभे - घी का घड़ा।
भावार्थ - श-शरीर-द्रव्यावश्यक कैसा होता है? जिसने आवश्यक पद के अधिकार को जाना है, उसके चेतना रहित, प्राणशून्य, अनशन
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