SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम-द्रव्यावश्यक इसी प्रकार व्यवहारनय के साथ भी योजनीय है। संग्रहनय की अपेक्षा से एक उपयोग रहित आत्मा एक द्रव्य आवश्यक तथा अनेक उपयोग रहित आत्माएँ अनेक द्रव्य आवश्यक हैं, ऐसा स्वीकार्य नहीं है। उसके अनुसार सभी आत्माएँ एक द्रव्य आवश्यक हैं। ___ ऋजुसूत्र नय की दृष्टि से एक उपयोग रहित आत्मा एक आगमद्रव्य आवश्यक है। यहाँ पार्थक्य स्वीकार्य नहीं होता। यदि ज्ञायक - ज्ञाता अनुपयुक्त - उपयोग रहित हो तो तीनों शब्दनयों के अनुसार वह अवस्तु रूप मानी जाती है। क्योंकि ज्ञाता उपयोग शून्य नहीं होता। यह आगम की अपेक्षा से द्रव्य आवश्यक का स्वरूप है। (१५) से किं तं णोआगमओ दव्वावस्सयं? ___णोआगमओ दव्वावस्सयं तिविहं पण्णत्तं। तंजहा - जाणयसरीरदव्वावस्सयं १ भवियसरीरदव्वावस्सयं २ जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तं दव्वावस्सयं ३। शब्दार्थ - जाणय - ज्ञ, भविय - भव्य, वइरित्तं - व्यतिरिक्त। भावार्थ - नो आगम द्रव्यावश्यक का स्वरूप क्या है? - नो आगम द्रव्यावश्यक तीन प्रकार का प्रज्ञप्त-प्रतिपादित हुआ है - १. ज्ञ शरीर द्रव्यावश्यक २. भव्य शरीर द्रव्यावश्यक ३. ज्ञ शरीर-भव्य शरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक। विवेचन - यहाँ नो आगम द्रव्यावश्यक में जो 'नो' का प्रयोग हुआ है, वह निषेधमूलक विशेष आशय से संपृक्त है। उससे दो भाव परिज्ञापित किए गए हैं। एक ‘आगमतः द्रव्यावश्यक' वह है, जहाँ आवश्यक का सर्वथा प्रतिषेध है, दूसरा आगमतः द्रव्यावश्यक वह है, जहाँ आंशिक रूप में निषेध का संसूचन है। . साहित्यशास्त्र में भी निषेधमूलक नञ् (नो) के प्रयोग में लगभग इसी प्रकार का विवेचन हुआ है। एक नञ् मुख्यतः निषेध का सूचक होता है। दूसरा नञ् वह होता है जहाँ निषेध की आंशिकता रहती है। इन्हें क्रमशः प्रसज्य प्रतिषेध और पर्युदास की संज्ञा से अभिहित किया गया है। . ___जहाँ आगम-आवश्यक आदि ज्ञान का सर्वथा अभाव होता है, वह नो आगमद्रव्यावश्यक सर्वदेशीय निषेधमूलक रूप है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy