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अनुयोगद्वार सूत्र
वाचना तो ली है किन्तुं उसकी अनुप्रेक्षा - अर्थ का अनुचिंतन नहीं किया है, वह आगमतः द्रव्यावश्यक है। क्योंकि "अनुपयोगो द्रव्यम्" - जहाँ उपयोग नहीं होता, ज्ञानविषयक साक्ष्य नहीं होता, वह द्रव्यरूप है, अतएव वह आवश्यक द्रव्यावश्यक संज्ञा से अभिहित है।
विवेचन - घोषसम और परिपूर्णघोष - इन दोनों विशेषणों में से घोषसम विशेषण शिक्षाकालाश्रयी है और परिपूर्णघोष विशेषण परावर्तनकाल की अपेक्षा है। ___णेगमस्स णं एगो अणुवउत्तो, आगमओ एगं दवावस्सयं, दोण्णि अणुवउत्ता, आगमओ दोण्णि दव्वावस्सयाई, तिण्णि अणुवउत्ता, आगमओ तिण्णि दव्वावस्सयाई, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाई ताई णेगमस्स . आगमओ दव्वावस्सयाई।
एवमेव ववहारस्स वि।
संगहस्स णं एगो वा अणेगो वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्वावस्सयं दव्वावस्सयाणि वा, से एगे दव्वावस्सए।
उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगं दव्वावस्सयं, पुहत्तं णेच्छइ। तिण्हं सद्दणयाणं जाणए अणुवउत्तं अवत्थु।
कम्हा?
जइ जाणए, अणुवउत्तं ण भवइ, जइ अणुवउत्तं, जाणए ण भवइ, तम्हा णत्थि आगमओ दव्वावस्सयं। सेत्तं आगमओ दव्वावस्सयं।
शब्दार्थ - णेगमस्स - नैगम नय का, अणुवउत्तो - उपयोग रहित, आगमओ - आगम की अपेक्षा से, दोण्णि - दो, तिण्णि - तीन, जावइया - जितने, तावइयाई - उतने, ताई - वे, ववहारस्स - व्यवहार, संगहस्स - संग्रह का, उज्जुसुयस्स - ऋजुसूत्र का, पुहुत्तं - पृथक्त्व, णेच्छइ - इच्छित नहीं है, सद्द - शब्द, अवत्थु - अवस्तु-असत्य, कम्हा - किस कारण से।
भावार्थ - नैगम नय की अपेक्षा से एक उपयोग रहित आत्मा एक आगम द्रव्य आवश्यक है। दो उपयोग रहित आत्माएँ दो आगम द्रव्य आवश्यक, तीन उपयोग रहित आत्माएँ तीन आगम द्रव्य आवश्यक हैं। इस प्रकार जितनी भी उपयोग रहित आत्माएँ हैं, वे सभी नैगम नय की दृष्टि से आगम द्रव्य आवश्यक हैं, तदन्तर्गत हैं।
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