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________________ अनुयोगद्वार सूत्र यह जघन्य संख्यात, उत्कृष्ट संख्यात और अजघन्य - अनुत्कृष्ट ( मध्यम ) संख्यात के रूप में तीन प्रकार का प्रतिपादित किया गया है। असंख्यात के भेद ४४४ से किं तं असंखेज्जए? असंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते । तंजहा - परित्तासंखेजए १ जुत्तासंखेज्जए २ असंखेज्जासंखेज्जए ३ | भावार्थ - असंख्यात कितने प्रकार का होता है? असंख्यात तीन प्रकार का प्रतिपादित है हुआ असंख्यातासंख्यात । किं तं परित्तासंखेज्जए ? परित्तासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते । तंजहा - जहण्णए १ उक्कोसेए २ अजहण्णमणुक्कोसए ३ । भावार्थ - परितासंख्यात कितने प्रकार का परिज्ञापित हुआ है ? यह १. जघन्य परितासंख्यात २. उत्कृष्ट परितासंख्यात और ३. अजघन्य - अनुत्कृष्ट (मध्यम) परितासंख्यात के रूप में तीन प्रकार का बतलाया गया है। से किं तं जुत्तासंखेज्जए? जुत्तासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते । तंजा - जहण्णए १ उक्कोसए २ अजहण्णमणुक्कोसए ३ । भावार्थ - युक्तासंख्यात कियत् प्रकार का प्रतिपादित हुआ है ? युक्तासंख्यात तीन प्रकार का बतलाया गया है १. जघन्य युक्तासंख्यात २. उत्कृष्ट - Jain Education International १. परितासंख्यात २. युक्तासंख्या और युक्तासंख्यात और ३. अजघन्यानुत्कृष्ट ( मध्यम ) युक्तासंख्यात । से किं तं असंखेज्जासंखेज्जए ? असंखेज्जासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते । तंजहा अजहण्णमणुक्कोसए ३ | For Personal & Private Use Only जहणए १ उक्कोसए २ www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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