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________________ असंख्यात के भेद ४४५ भावार्थ - असंख्यातासंख्यात कितने प्रकार का कहा गया है? असंख्यातासंख्यात तीन प्रकार का परिज्ञापित हुआ है - १. जघन्य २. उत्कृष्ट ३. अजघन्यानुत्कृष्ट। से किं तं अणंतए? अणंतए तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - परित्ताणंतए १ जुत्ताणंतए २ अणंताणंतए३। भावार्थ - अनंत के कितने भेद होते हैं? अनंत के परितानंत, युक्तानंत और अनंतानंत के रूप में तीन भेद बतलाए गए हैं। से किं तं परित्ताणंतए? परित्ताणंतए तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - जहण्णए १ उक्कोसए २ अजहण्णमणुक्कोसए ३। भावार्थ - परितानंत के कितने भेद बतलाए गए हैं? परितानंत १. जघन्य २. उत्कृष्ट और ३. अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) के रूप में तीन प्रकार का कहा गया है। ___ से किं तं जुत्साणंतए? जुत्ताणंतए तिविहे पण्णत्ते । तंजहा - जहण्णए १ उक्कोसए २ अजहण्णमणुक्कोसए । भावार्थ - युक्तानंत के कितने भेद बतलाए गए हैं? यह तीन प्रकार का परिज्ञापित हुआ है - १. जघन्य २. उत्कृष्ट और ३.अजघन्यअनुत्कृष्ट (मध्यम)। से किं तं अणंताणंतए? अणंताणंतए दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - जहण्णए १ अजहण्णमणुक्कोसए २॥ भावार्थ - अनंतानंत कितने प्रकार का कहा गया है ? यह दो प्रकार का बतलाया गया है - जघन्य और अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम)। जहण्णयं संखेजयं केवइयं होइ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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