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अनुयोगद्वार सू
कालिकश्रुत परिमाणसंख्या
से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा ?
कालियसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता । तंजहा पज्जवसंखा, अक्खरसंखा, संघायसंखा, पयसंखा, पायसंखा, गाहासंखा, सिलोगसंखा, वेदसंखा, णिज्जुत्तिसंखा, अणुओगदारसंखा, उद्देसगसंखा, अज्झयणसंखा, सुयखंधसंखा, अंगसंखा । सेत्तं कालियसुयपरिमाणसंखा ।
शब्दार्थ पज्जवसंखा - पर्यवसंख्या अक्खर अक्षर, सिलो श्लोक, वेढ वेष्ठक, णिज्जुत्ति - निर्युक्ति, उद्देसग - उद्देशक, अज्झयण - अध्ययन, सुयखंध - श्रुतस्कंध । भावार्थ - कालिकश्रुत परिमाणसंख्या कितने प्रकार की बतलाई गई है ?
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कालिकश्रुत परिमाणसंख्या अनेकविध प्रज्ञप्त हुई है, यथा पर्याय संख्या, अक्षर संख्या, संघात संख्या, पद संख्या, पाद संख्या, गाथा संख्या, श्लोक संख्या, वेष्टक संख्या, निर्युक्ति संख्या, अनुयोगद्वार संख्या, उद्देश संख्या, अध्ययन संख्या, श्रुतस्कंध संख्या एवं अंग संख्या ।
यह कालिकश्रुत परिमाणसंख्या का स्वरूप है ।
विवेचन - कालिकश्रुत का कालविशेष से संबंध होता है। इस कारण जो-जो आगम कालविशेष में पठनीय होते हैं, उनकी कालिक संख्या है। कालिकश्रुत या आगमों का रात व दिन के पहले और आखिरी प्रहर में स्वाध्याय किए जाने का विधान है।
उदाहरणार्थ - उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कंध, निशीथ आदि कालिकश्रुत के अन्तर्गत आते हैं। सूत्र में कालिकश्रुत के संदर्भ में कतिपय विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
पर्यव संख्या पर्यव शब्द पर्याय का सूचक है। साथ ही साथ वह धर्म या गुणा भी बोधक है। तद्विषयक संख्या पर्यवसंख्या है।
अक्षर संख्या - अकारादि स्वर तथा क वर्ग आदि व्यंजन अक्षर कहे जाते हैं। 'न क्षरति इति अक्षरम्' - जो ध्वनि रूप से अविनश्वर है, उसे अक्षर कहते हैं। अक्षर संख्यात होते हैं, अनंत नहीं।
संघात संख्या - दो या अधिक अक्षरों के सम्मिलन या संयोग को संघात कहा जाता है। ये भी संख्यात हैं, अनंत नहीं।
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