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परिमाण संख्या के भेद
गिरते हुए पीले पत्ते और कोंपल का यह संभाषण न तो हो रहा है और न होगा। यह भव्यजनों को उद्बोधन देने हेतु उपमा दी गई है।
विवेचन - इस सूत्र में असत् मूलक उपमान द्वारा सद्प उपमेय का बोध कराया गया है। जैसा सूत्र में उल्लेख हुआ है - जीर्ण और नवीन पत्ते में न तो परस्पर ऐसी बात होगी, न कभी हुई। यह जो वार्तालाप का उपमान है, वह असद्प है। इस उपमान द्वारा भव्य जीवों को प्रतिबोध दिया गया है कि संसार के समस्त पदार्थ अनित्य हैं। कभी एक से नहीं रहते। अतः अपनी उन्नतावस्था में अहंकार नहीं होना चाहिए और न किसी दुःखित, पीड़ित का अनादर ही करना चाहिए। यह तथ्य यहाँ उपमेय है, वाच्य है, बोध्य है। यह सद्रूप है क्योंकि जगत् की वास्तविकता यही है।
४. असद् - असद् रूप औपम्य संख्या असंतयं असंतएहिं उवमिज्जइ - जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं। सेत्तं ओवम्मसंखा। — शब्दार्थ - खरविसाणं - गधे का सींग, ससविसाणं - खरगोश का सींग।
भावार्थ - असत् या अविद्यमान पदार्थ को किसी अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद्प औपम्य संख्यान है। जैसे गधे की सींग है, वैसा ही खरगोश का सींग है। ... विवेचन - यहाँ गधे का सींग उपमान है, खरगोश का सींग उपमेय है। न गधे के सींग होता है और न खरगोश के ही सींग होता है। दोनों ही में सींग का असत् भाव है, नास्तित्व है। ऐसा संख्यान-प्रकटीकरण असद्-असद् औपम्यमूलक है।
परिमाण संख्या के भेद से किं तं परिमाणसंखा?
परिमाणसंखा दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - कालियसुयपरिमाणसंखा १ दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा य २।
भावार्थ - परिमाणसंख्या कितने प्रकार की परिज्ञापित हुई है? .
यह कालिकश्रुत परिमाणसंख्या और दृष्टिवादश्रुत परिमाणसंख्या के रूप में दो प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है।
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