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________________ ४३६ अनुयोगद्वार सूत्र कारण में उपचार कर (वर्तमान में भी) उसे कार्य रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। जैसे राजकुमार को जो वर्तमान में राजा नहीं है, राजा होने का कारण मानकर राजा कह दिया जाता है। इसी प्रकार एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र - ये तीनों प्रकार के द्रव्य शंख यद्यपि वर्तमान में भावशंख नहीं है किन्तु भविष्यवर्ती भावशंखत्व के कारण हैं। अतः इन तीनों को भावशंख के रूप में स्वीकार करने की विधि है। ___'अतीतानागतवर्जित-वर्तमान-पर्यायमाग्राह्यर्जुसूत्रम्' - भूत एवं भविष्य रहित, केवल वर्तमानवर्ती पर्याय या अवस्था को ग्रहण करता है, वह ऋजुसूत्रनय है। इस परिभाषा के अनुसार यह नय पूर्ववर्णित तीन नयों की अपेक्षा शुद्धतर है। अतः यह बद्धायुष्क एवं अभिमुख नामगोत्र - इन दो प्रकार के शंखों को ही मानता है। इसके अनुसार एक भवी जीव शंख नहीं माना जाता क्योंकि वह भावशंख से अति व्यवधानयुक्त - अन्तरयुक्त है। उसे शंख मानने से अति प्रसंग - प्रसंग से बाहर जाने का दोष आता है। ____ शब्द, समभिरूढ तथा एवंभूत नय और अधिक सूक्ष्मतर हैं। ये भावशंख के आसन्न - निकटवर्ती होने से अभिमुखनामगोत्र को तो शंख मानते हैं किन्तु एकभविक एवं बद्धायुष्क को शंख नहीं मानते। क्योंकि भावशंख के साथ उनका अत्यधिक व्यवधान है। यह विविध नयगत विवेचन सापेक्ष दृष्टिकोण पर आधारित है। बृहत्कल्प पीठिका में बताया गया है कि - उपर्युक्त तीन प्रकार के शंखों में से आर्यसुहस्ति एक प्रकार का द्रव्य शंख (अभिमुख नाम गोत्र) चाहते (मानते) हैं, आर्यसमुद्र दो प्रकार के द्रव्यशंखों (बद्धायुष्क और अभिमुख नाम गोत्र) को मानते हैं, आर्यमंगु तीनों प्रकार के द्रव्यशंखों (एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनाम गोत्र) को मानते हैं। ___ औपम्य संख्या से किं तं ओवम्मसंखा? ओवम्मसंखा चउव्विहा पण्णत्ता। तंजहा - अत्थि संतयं संतएणं उवमिजइ १ अत्थि संतयं असंतएणं उवमिज्जइ २ अत्थि असंतयं संतएणं उवमिज्जइ ३ अस्थि असंतयं असंतएणं उवमिजइ ४। * स्वाध्याय सूत्र, नवम अधिकार, सूत्र - ६४ पृ० २४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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