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संख्यातप्रमाण विवेचन
४३५.
हे आयुष्मन् गौतम! इस स्थिति में यह जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त एवं उत्कृष्टतः एक पूर्व के तीसरे भाग प्रमाण तक रहता है।
अभिमुहणामगोत्ते णं भंते! 'अभिमुहणामगोएं' त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
भावार्थ - हे भगवन्! अभिमुखनामगोत्र (शंख का) अभिमुखगोत्र ऐसा नाम कियत्कालिक होता है? ___ हे आयुष्मन् गौतम! यह स्थिति जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त परिमित होती है। ___ इयाणिं को णओ कं संखं इच्छइ? .
तत्थ णेगमसंगहववहारा तिविहं संखं इच्छंति, तंजहा - एगभवियं १ बद्धाउयं२ अभिमुहणामगोत्तं च ३। उज्जुसुओ दुविहं संखं इच्छइ, तंजहा - बद्धाउयं च १ अभिमुहणामगोत्तं च २। तिण्णि सद्दणया अभिमुहणामगोत्तं संखं इच्छंति। सेत्तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा। सेत्तं णोआगमओ दव्वसंखा। सेत्तं
दव्वसंखा। ... शब्दार्थ - इयाणिं - इनमें से, इच्छइ - मानता है (चाहता है)। ___ भावार्थ - इन तीनों (शंखों) में से कौनसा नय किस शंख को मानता है?
नैगम, संग्रह और व्यवहारनय एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनाम गोत्र - इन तीनों शंखों को मानता है। ऋजुसूत्रनय दो शंखों - बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र को मानता है। तीनों शब्दनय अभिमुखनाम गोत्र को मानते हैं।
यह ज्ञशरीर-भव्य शरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक का स्वरूप है।
यह द्रव्य संख्या के अन्तर्गत नोआगमतः द्रव्य संख्या का निरूपण है। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में उपर्युक्त त्रिविध शंखों में से कौन-कौन नय किस-किस शंख । को स्वीकार करते हैं, यह स्पष्टीकरण किया गया है। - नैगम, संग्रह एवं व्यवहार ये तीनों नय सामान्य विशेषात्मक - व्यवहारात्मक स्थूल या बाह्य दृष्टि से वस्तु तत्त्व पर विचार करते हैं। अतः इनमें भविष्यवर्ती कार्य का वर्तमानवर्ती
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