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________________ अनुयोगद्वार सूत्र +- + ___इस प्रकार आपके अभिमत से तो अनवस्था हो जायेगी। अतः ऐसा मत कहो - प्रदेश भजनीय हैं वरन् ऐसा कहो - जो धर्म रूप में प्रदेश हैं, वे प्रदेश हैं, वे प्रदेश (स्वयं) ही धर्मास्तिकाय हैं, जो अधर्म रूप प्रदेश हैं, वे प्रदेश ही अधर्मास्तिकाय हैं, जो आकाश रूप प्रदेश हैं, वे प्रदेश ही आकाशास्तिकाय हैं, जो एक प्रदेश के जीव हैं, वे प्रदेश नोजीव हैं, स्कंध के जो प्रदेश हैं, वे नोस्कंधात्मक हैं। इस प्रकार कहते हुए शब्दनयवादी को समभिरूढवादी ने कहा - जो तुम कहते हो, धर्म रूप प्रदेश ही धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं यावत् जो एक जीव के प्रदेश हैं, वे ही नोजीव हैं तथा जो स्कंध के प्रदेश हैं वे नोस्कंधरूप हैं, यह कथन युक्ति युक्त नहीं है। __क्योंकि, यहाँ तत्पुरुष और कर्मधारय - दो समास होते हैं। यह युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि दोनों में से यहाँ कौन सा समास होगा? क्या यहाँ तत्पुरुष को लें या कर्मधारय को लें? . ____ यदि तत्पुरुष को लेकर बोलते हो तो ऐसा बोलना ही मत अथवा कर्मधारय को लेकर बोलते हो तो विशेष रूप से कहो - धर्म का जो प्रदेश है, वही प्रदेश धर्मास्तिकाय है। अधर्म · का जो प्रदेश है, वही प्रदेश अधर्मास्तिकाय है। आकाश का जो प्रदेश है, वही प्रदेश आकाशास्तिकाय है। एक जीव का जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोजीवास्तिकाय रूप है। स्कंध का जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कंध रूप है। ऐसा कहने पर समभिरूढनयवादी से संप्रति एवं - भूतनयवादी ने कहा - जो-जो तुम कहते हो, वह सब कृत्स्न - समग्र (देश-प्रदेशात्मक कल्पना विवर्जित) है, प्रतिपूर्ण - सामष्टिक रूप से पूर्ण, अवयव रहित है तथा एक ही नाम से गृहीत किये जाते हैं। इसलिए देश भी अवास्तविक हैं और प्रदेश भी अवास्तविक हैं। यही प्रदेश दृष्टांत है। इस प्रकार नयप्रमाण विषयक विवेचन संपन्न होता है। विवेचन - इस सूत्र में समस्त नयों का प्रदेश के साथ उन-उन की दृष्टि के अनुरूप विवेचन करते हुए नय प्रमाण का निरूपण किया गया है। "अनन्तधर्मात्मकवस्तुन्येकधर्मावबोधको नयः" - अनन्त धर्मात्मक वस्तु के किसी एक धर्म का जो अवबोध करता है, वह नय है। ___ स्वाध्यायसूत्र, नवम अधिकार, सूत्र-५५, पृ.-२३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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