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________________ ४२६ अनुयोगद्वार सूत्र विशुद्धतर नय के अनुसार वह कहता है - मैं दक्षिणार्द्ध भरत में निवास करता हूँ। दक्षिणार्द्ध भरत में अनेक ग्राम, नगर, खेट, कर्बट, मंडब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रम, संवाह तथा सन्निवेश हैं। क्या उन सब में आप रहते हैं? विशुद्धतर नैगम नय के अनुसार वह कहता है - मैं पाटलिपुत्र में रहता हूँ। .. पाटलिपुत्र में अनेक गृह - घर हैं, क्या उन सबमें रहते हैं? विशुद्धतर नयानुसार वह कहता है - मैं देवदत्त के घर में रहता हूँ। देवदत्त के घर में अनेक कमरे (प्रकोष्ठ) हैं। क्या आप उन सब में रहते हैं? विशुद्धतर नैगम नय के अनुसार वह कहता है - मैं गर्भगृह (अन्दर का कमरा) में रहता हूँ। इस प्रकार नैगम नय के अनुसार निवास करते हुए पुरुष का विवेचन है। इसी प्रकार व्यवहारनय के संदर्भ में भी जानना चाहिये। संग्रहनय के अनुसार जब व्यक्ति शय्या संस्तारक पर अवस्थित हो तभी वह निवास करता हुआ कहा जाता है। ___ ऋजुसूत्रनय के अनुसार जितने आकाश प्रदेशों को वह अवगाहित करता है, तदनुसार उसका निवास है। तीनों शब्दनयों के अनुसार आत्मभाव स्वभाव में ही निवास करता है। यह वसति दृष्टांत का स्वरूप है। . प्रदेश दृष्टान्त से किं तं पएसदिलुतेणं? पएसदिटुंतेणं - णेगमो भणइ - 'छण्हं पएसो, तंजहा - धम्मपएसो, अधम्मपएसो, आगासपएसो, जीवपएसो, खंधपएसो, देसपएसो।' एवं वयं णेगमं संगहो भणइ - ‘ज भणसि - छण्हं पएसो तं ण भवइ।' . 'कम्हा?' 'जम्हा जो देसपएसो सो तस्सेव दव्वस्स।' 'जहा को दिटुंतो?' 'दासेण मे खरो कीओ, दासो वि मे खरो वि मे। तं मा भणाहि-छण्हं पएसो, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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