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________________ प्रदेश दृष्टान्त ४२७ भणाहि पंचण्हं पएसो, तंजहा - धम्मपएसो, अधम्मपएसो, आगासपएसो, जीवपएसो, खंधपएसो।" एवं वयंतं संगहं ववहारो भणइ - ‘जं भणसि - पंचण्हं पएसो तं ण भवइ।' 'कम्हा ?' 'जइ जहा पंचण्हं गोट्ठियाणं पुरिसाणं केइ दव्वजाए सामण्णे भवइ, तंजहा - हिरण्णे वा सुवण्णे वा धणे वा धण्णे वा, तं ण ते जुत्तं वत्तुं जहा पंचण्हं पएसो, तं मा भणाहि - पंचण्हं पएसो, भणाहि - पंचविहो पएसो, तंजहा - धम्मपएसो, अधम्मपएसो, आगासपएसो, जीवपएसो, खंधपएसो।' एवं वयंतं ववहारं उज्जुसुओ भणइ - ‘जं भणसि - पंचविहो पएसो तं ण भवइ।' ___ 'कम्हा?' 'जइ ते पंचविहो पएसो, एवं ते एक्केक्को पएसो पंचविहो, एवं ते पणवीसइविहो पएसो भवइ, तं मा भणाहि - पंचविहो पएसो, भणाहिभइयव्वो पएसो - सिय धम्मपएसो, सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो, सिय जीवपएसो, सिय खंधपएसो।' एवं वयंतं उज्जुसुयं संपइ सद्दणओ भणइ - 'जं भणसि भइयव्वो पएसो तं ण भवइ।' . 'कम्हा ?' .... 'जइ भइयव्वो पएसो एवं ते धम्मपएसो वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, अधम्मपएसो वि सिय धम्मपएसो जाव सिय खंधपएसो, जीवपएसो वि सिय धम्मपएसो जाव सिय खंधपएसो, खंधपएसो वि सिय धम्मपएसो जाव सिय खंधपएसो, एवं ते अणवत्था भविस्सइ, तं मा भणाहि - भइयव्वो पएसो, भणाहि - धम्मे पएसे से पएसे धम्मे, अहम्मे पएसे से पएसे अहम्मे, आगासे पएसे से पएसे आगासे, जीवे पएसे से पएसे णोजीवे, खंधे पएसे से पएसे णोखंधे।' एवं वयं सद्दणयं समभिरूढो भणइ - 'जं भणसि - धम्मपएसे से पएसे धम्मे जाव जीवे पएसे से पएसे णोजीवे खंधे पएसे से पएसे णोखंधे तं ण भवइ।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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