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वसति दृष्टान्त
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विसुद्धतराओ णेगमो भणइ - ‘पाडलिपुत्ते वसामि'। 'पाडलिपुत्ते अणेगाई गिहाई, तेसु सव्वेसु भवं वससि?'
विसुद्धतराओ णेगमो भणइ - 'देवदत्तस्स घरे वसामि'। 'देवदत्तस्स घरे अणेगा कोट्ठगा, तेसु सव्वेसु भवं वससि?'
विसुद्धतराओ णेगमो भणइ - 'गब्भघरे वसामि'। एवं विसुद्धस्स णेगमस्स वसमाणो। एवमेव ववहारस्स वि। संगहस्स संथारसमारूढो वसइ। उज्जुसुयस्स जेसु आगासपएसेसु ओगाढो तेसु वसइ। तिण्हं सद्दणयाणं आयभावे वसइ। सेत्तं वसहिदिटुंतेणं। .शब्दार्थ-कंचि - किसी, वसामि - रहता हूँ (निवास करता हूँ), सयंभूरमणपजवसाणास्वयंभूरमणपर्यवसान - स्वयंभूरमण तक, गिहाई - घर, कोट्ठगा - कोष्ठक - कमरे, गन्भघरेगर्भगृह, संथारसमारूढो - बिस्तर पर अवस्थित, आयभावे - आत्मभाव - स्वभाव में।
भावार्थ - वसति - आवास रूप दृष्टांत का क्या स्वरूप है? कोई अज्ञातनामा पुरुष किसी पुरुष से कहे - आप कहाँ निवास करते हैं? (वहाँ वह) अविशुद्ध नयानुसार कहता है - लोक में निवास करता हूँ। लोक तीन प्रकार का बतलाया गया है - १. ऊर्ध्वलोक २. अधोलोक एवं ३. तिर्यक्लोक। क्या आप उन सब में निवास करते हैं? विशुद्धनय के अनुसार वह कहता है - तिर्यक्लोक में निवास करता हूँ।
तिर्यक्लोक में जंबूद्वीप से लेकर स्वयंभूरमण पर्यन्त असंख्येय द्वीप समुद्र बतलाए गए हैं, क्या आप उन सब में निवास करते हैं?
(वह) विशुद्धतर नय से कहता है - मैं जंबूद्वीप में रहता हूँ।
जंबूद्वीप में दस क्षेत्र बतलाए गए हैं - १. भरत २. ऐरवत ३. हैमवत ४. ऐरण्यवत ५. हरिवर्ष ६. रम्यक्वर्ष ७. देवकुरू ८. उत्तरकुरू ६. पूर्वविदेह तथा १०. अपरविदेह। क्या (आप) इन सब में निवास करते हैं? '
विशुद्धतर नैगमनयानुसार वह कहता है - भरतक्षेत्र में निवास करता हूँ।
भरतक्षेत्र दो प्रकार का कहा गया है - दक्षिणार्द्ध भरत और उत्तरार्द्ध भरत। क्या आप उन सबमें (दों में) बसते हैं?
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