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अनुयोगद्वार सूत्र
हो जाता है। उसके निर्माण की अस्पष्ट दशा अविशुद्ध नैगम, उत्तरोत्तर विशुद्ध होती दशा विशुद्धतर नैगम कहलाती है। यही इस उदाहरण में व्यक्त किया गया है। इसीलिए प्रस्थक निर्माता सभी क्रियाओं को प्रस्थक के साथ जोड़ता है।
व्यवहारनय व्यवहारोपयोगी प्रक्रिया या पद्धति को लेकर चलता है। नैगमनय में लोग सामान्य विशेषात्मक वस्तु या कार्य के स्वरूप को स्वीकार कर तदनुरूप वचन प्रयोग करते हैं। तदनुसार लोगों के व्यवहार में भी वह प्रचलित हो जाता है। इसी कारण व्यवहार के संदर्भ में भी नैगम के अनुसार समझने का उल्लेख किया गया है।
वसति दृष्टान्त से किं तं वसहिदिटुंतेणं?
वसहिदिटुंतेणं - से जहाणामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं वएजा - ‘कहिं भवं वससि?'
तं अविसुद्धो णेगमो भवइ - ‘लोगे वसामि'। .
'लोगे तिविहे पण्णत्ते, तंजहा - उडलोए १ अहोलोए ? तिरियलोए ३ तेसु सव्वेसु भवं वससि?' विसुद्धो णेगमो भणइ - 'तिरियलोए वसामि'।
'तिरियलोए जंबुद्दीवाइया सयंभूरमणपजवसाणा असंखिजा दीवसमुद्दा पण्णत्ता तेसु सव्वेसु भवं वससि?' ..
विसुद्धतराओ णेगमो भणइ - 'जंबुद्दीवे वसामि'। 'जंबुद्दीवे दस-खेत्ता पण्णत्ता, तंजहा - भरहे १ एरवए २ हेमवए ३ एरण्णवए ४ हरिवस्से ५ रम्मगवस्से ६ देवकुरू ७ उत्तरकुरू ८ पुव्वविदेहे ६ अवरविदेहे १० तेसु सव्वेसु भवं वससि?'
विसुद्धतराओ णेगमो भणइ - ‘भरहे वासे वसामि' 'भरहेवासे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा - दाहिणड्डभरहे १ उत्तरद्वभरहे य २. तेसु सव्वे (दो)सु भवं वससि?' विसुद्धतराओ णेगमो भणइ - ‘दाहिणड्डभरहे वसामि'। _ 'दाहिणभरहे अणेगाइं गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मंडब-दोणमुंहपट्टणासमसंवाह-सण्णिवेसाई, तेसु सव्वेसु भवं वससि?' .
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