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वैधोपनीत उपमान प्रमाण
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शब्दार्थ - सामलेरो - शाबलेय - चितकबरी गाय का बछड़ा, बाहुलेर - बाहुलेय - काली गाय का बछड़ा।
भावार्थ - किंचित् वैधर्म्य का क्या स्वरूप है?
जैसा चितकबरी गाय का बछड़ा होता है, वैसा काली गाय का बछड़ा नहीं होता है तथा जैसा काली गाय का बछड़ा होता है, वैसा चितकबरी गाय का बछड़ा नहीं होता है।
से किं तं पायवेहम्मे?
पायवेहम्मे - जहा वायसो ण तहा पायसो, जहा पायसो ण तहा वायसो। सेत्तं पायवेहम्मे।
शब्दार्थ - वायसो - कौआ, पायसो - खीर। भावार्थ - प्रायःवैधर्म्य का क्या स्वरूप है?
जैसा कौआ होता है, वैसी पायस (खीर) नहीं होती है तथा जैसी पायस होती है, वैसा वायस नहीं होता है। . यह प्रायःवैधर्म्य का स्वरूप है।
से किं तं सव्ववेहम्मे?
सव्ववेहम्मे ओवम्मे णत्थि, तहावि तेणेव तस्स ओवम्मं कीरइ, जहा णीएणं णीयसरिसं कयं, दासेणं दाससरिसं कयं, काकेणं काकसरिसं कयं, साणेणं साणसरिसं कयं, पाणेणं पाणसरिसं कयं। सेत्तं सव्ववेहम्मे। सेत्तं वेहम्मोवणीए। सेत्तं ओवम्मे।
शब्दार्थ - णीएणं - नीच ने, दासेणं - दास ने, काकेणं - कौवे ने, साणेणं - श्वान - कुत्ते ने, पाणेणं - चांडाल ने।
भावार्थ - सर्व वैधर्म्य का क्या स्वरूप है?
सर्व वैधर्म्य में उपमा नहीं दी जा सकती तथापि उससे उसको उपमित किया जाता है। जैसे - नीच ने नीच के समान, दास ने दास के सदृश, कौवे ने कौवे के समान, कुत्ते ने कुत्ते के सदृश और चांडाल ने चांडाल के समान कार्य किया।
यह सर्ववैधोपनीत का विवेचन है। इस प्रकार वैधोपनीत उपमान प्रमाण का निरूपण परिसमाप्त होता है।
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