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________________ ४०८ अनुयोगद्वार सूत्र साहित्य शास्त्र में इसे अर्थालंकारों के अन्तर्गत अनन्वय अलंकार की संज्ञा दी गई है। सूत्र में अर्हन्त को अर्हन्त के सदृश, चक्रवर्ती को चक्रवर्ती के सदृश आदि जो कहा गया है, उसका यही तात्पर्य है। अर्हत् वह पद है, जहाँ ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का सर्वथा क्षय होने से सर्वज्ञत्व तथा जिन नाम कर्म के उदय से त्रैलोक्य पूज्यता की प्राप्ति होती है, वैसी प्राप्ति तीर्थंकर के सिवाय अन्य किसी को नहीं होती है। अतः उपमा के लिए अर्हत् को ही लिया जाता है। ___ लौकिक वैभव, सामर्थ्य, पराक्रम, शक्ति आदि की दृष्टि से चक्रवर्ती का जगत् में सर्वाधिक महत्त्व है। इनके तुल्य अन्य पुरुष नहीं होता। चक्रवर्ती, चक्रवर्ती के तुल्य ही होता है। यही तथ्य अन्य उदाहरणों पर लागू होता है। अनन्वय अलंकार का साहित्य शास्त्र में निम्न उदाहरण दिया गया हैगगनं गगनाकरं सागरः सागरोपमः। रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव॥ अनंत आकाश अनंत आकाश से ही तुलनीय है। राम और रावण का युद्ध जितना विकराल और दुर्घर्ष हुआ, वह उसी से तुलनीय है। अन्य किसी द्वन्द्व युद्ध से नहीं। क्योंकि दोनों की पराक्रमशीलता अपनी-अपनी कोटि की अद्वितीय थी। वैधयोपनीत उपमान प्रमाण से किं तं वेहम्मोवणीए? वेहम्मोवणीएतिविहेपण्णत्ते।तंजहा- किंचिवेहम्मे १पायवेहम्मे २ सव्ववेहम्मे३। शब्दार्थ - वेहम्मोवणीए - वैधोपनीत । भावार्थ - वैधोपनीत उपमान प्रमाण कितने प्रकार का बतलाया गया है? वैधोपनीत उपमान प्रमाण तीन प्रकार का बतलाया गया है, यथा - १. किंचित् वैधर्म्य २. प्रायः वैधर्म्य और ३. सर्व वैधर्म्य। से किं तं किंचिवेहम्मे? किंचिवेहम्मे - जहा सामलेरो ण तहा बाहुलेरो, जहा बाहुलेरो ण तहा सामलेरो। सेत्तं किंचिवेहम्मे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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