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अनुयोगद्वार सूत्र
भविष्यत्काल से किं तं अणागयकालगहणं?
अणागयकालगहणं - अब्भस्स णिम्मलत्तं, कसिणा य गिरी सविज्जया मेहा। थणियं वाउब्भामो, संझा रत्ता पणि(ट्टा)द्धा य॥३॥ वारुणं वा महिंदं वा अण्णयरं वा पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा - सुवुट्ठी भविस्सइ। सेत्तं अणागयकालगहणं।
शब्दार्थ - अब्भस्स - आकाश की, णिम्मलत्तं - निर्मलता, कसिणा - कृष्णता, गिरि - पर्वत, सविजुया - बिजली सहित, मेहा - मेघ, थणियं - गर्जना, वाउब्भामो - अनुकूल वायु का बहना, संझा - संध्या, रत्ता - लालिमा, पणिद्धा - गाड़ी, अण्णयरं - अन्यतर, उप्पायं - उत्पात - उल्कापात आदि।
भावार्थ - भविष्यकाल गृहीत अनुमान का क्या स्वरूप है?
आकाश की निर्मलता - स्वच्छता, पर्वतों की कृष्णता, विद्युत् युक्त मेघों की गर्जना, अनुकूल वायु का बहना, संध्या के समय गहरी लालिमा ॥३॥ ____ तथा आर्द्रा आदि एवं रोहिणी आदि नक्षत्रों में होने वाले अथवा और किसी प्रशस्त उत्पात, उल्कापात आदि शुभ शकुन को देखकर अनुमान करना कि अच्छी वर्षा होगी, यह अनागत काल ग्रहण अनुमान है।
विवेचन - नक्षत्रों के संदर्भ में वरुण और माहेन्द्र का प्रयोग हुआ है, उसका आशय यह है कि ज्योतिष शास्त्र में पूर्वाषाढा, उत्तरा भाद्रपदा, आश्लेषा, आर्द्रा, मूल, रेवती तथा शतभिष को वारूण तथा अनुराधा, अभिजित, ज्येष्ठा, उत्तराषाढा, धनिष्ठा, रोहिणी तथा श्रावण को माहेन्द्र नक्षत्र के अन्तर्गत माना जाता है। ___मेघ वर्षण से इनका विशेष संबंध माना जाता है। इन नक्षत्रों में होने वाले अनुकूल शकुनों को देखकर अच्छी वृष्टि होने का अनुमान किया जाता है।
भड्डरि नामक विद्वान् हुए हैं, जिन्होंने इन नक्षत्रों में होने वाले विशेष शकुनों की विस्तार से चर्चा की है, जिससे भविष्य में होने वाली वृष्टि का अनुमान करने में बहुत ही सुविधा रहती है।
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