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________________ विपरीत विशेषदृष्ट साधर्म्यवत् अनुमान ४०३ विपरीत विशेषदृष्ट साधर्म्यवत् अनुमान एएसिं चेव विवजासे तिविहं गहणं भवइ, तंजहा - अतीयकालगहणं १ पडुप्पण्णकालगहणं २ अणागयकालगहणं ३। शब्दार्थ - विवजासे - विपर्यास - विपरीत। भावार्थ - इनका (पूर्व वर्णित विशेष दृष्टि अनुमानत्रय का) विपर्यास में भी तीन प्रकार से ग्रहण होता है, यथा - १. अतीत कालग्रहण २. प्रत्युत्पन्न काल ग्रहण और ३. अनागत काल ग्रहण। से किं तं अतीयकालगहणं? अतीयकालगहणं णित्तिणाई वणाई अणिप्फण्णसस्सं वा मेइणिं सुक्काणि य कुंडसरणई- दीहियातडागाइं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा - कुवुट्टी आसी। सेत्तं अतीयकाल-गहणं। - - शब्दार्थ - णित्तिणाई - निष्तृण - तृण रहित, अणिप्फण्णसस्सं - अनिष्पन्नसस्यं - फसल या धान्य रहित, मेइणिं - मेदिनी - पृथ्वी को, सुक्काणि - शुष्क - सूखे। भावार्थ - अतीतकाल ग्रहण क्या स्वरूप है? तृण रहित वन, धान्य रहित भूमि, सूखे कुण्ड, सरोवर, नदी, वापी तथा तालाब आदि देखकर यह अनुमान होता है, यहाँ वर्षा का अभाव रहा। यह अतीत काल ग्रहण का स्वरूप है। से किं तं पडुप्पण्णकालगहणं? पडुप्पण्णकालगहणं - साहं गोयरग्गगयं भिक्खं अलभमाणं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा - दुन्भिक्खे वट्टइ। सेत्तं पडुप्पण्णकालगहणं। शब्दार्थ - अलभमाणं - प्राप्त न करते हुए। भावार्थ - वर्तमान कालं ग्रहण का क्या स्वरूप है? गोचरी हेतु गए हुए साधु को भिक्षा प्राप्त न करता हुआ देखकर यह अनुमान होता है कि यहाँ दुर्भिक्ष है। यह वर्तमान काल ग्रहण अनुमान का स्वरूप है। से किं तं अणागयकालगहणं? . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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