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नाम और स्थापना निक्षेप में अन्तर
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विवेचन - मानव बड़ा कल्पनाशील प्राणी है। वह जीवन से सम्बद्ध व्यक्ति, प्रयुक्त पदार्थ आदि को स्मृति में रखना चाहता है। वैसा करने के लिए मानव ने अपनी उर्वर कल्पना के आधार पर स्व विचारानुरूप प्रतिमा, चित्र आदि तरह-तरह के प्रतीक निर्मित किए, आज भी करता है। वैसा करने में उसको एक प्रकार की सुखानुभूति होती है, जो आसक्ति प्रसूत है। यों परिकल्पना के आधार पर जो प्रतीक निर्मित होते हैं, उनका तत्सम्बद्ध व्यक्ति या वस्तु के रूप में कथन करना स्थापना निक्षेप का विषय है।
यह परिकल्पित रूप निर्मित अनेक वस्तुओं के आधार पर की जाती है, जिनका ऊपर के सूत्र में उल्लेख है।
(११) नाम और स्थापना निक्षेप में अन्तर णामट्ठवणाणं को पइविसेसो? णामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा, आवकहिया वा।
शब्दार्थ - णाम-ठवणाणं - नाम और स्थापना में, पइविसेसो - प्रतिविशेष-अन्तर, आवकहियं - यावत्कथिक, इत्तरिया - इत्वरिक, होज्जा - होती है।
भावार्थ - नाम निक्षेप और स्थापना निक्षेप में क्या अंतर है?
नाम निक्षेप यावत्कथिक होता है परन्तु स्थापना निक्षेप इत्वरिक और यावत्कथिक दोनों प्रकार का होता है। . विवेचन - इस सूत्र में नाम निक्षेप और स्थापना निक्षेप का अंतर बतलाया गया है।
यावत्कथिक का व्युत्पत्तिगत विश्लेषण इस प्रकार है - "यावत् यद्वस्तु व्यक्ति वा विद्यते तावद् तन्नाम्ना कठयतेति यावत्कथिकम्" - अर्थात् जिस व्यक्ति विशेष या वस्तु विशेष को जो नाम दिया जाता है, वह तब तक प्रवर्तित रहता है, जब तक वह व्यक्ति या वस्तु उस रूप में अस्तित्व लिए रहती है। यावत्कथिक द्वारा इस भाव का द्योतन हुआ है। नाम-निक्षेप की यह विशेषता है। . स्थापना निक्षेप का भी एक पक्ष ऐसा ही है। अर्थात् किन्हीं पदार्थों में जो स्थापना परिकल्पित की जाती है, वह उन पदार्थों के उन-उन रूपों में अवस्थित रहने तक विद्यमान रहती है। इस दृष्टि से स्थापना निक्षेप यावत्कथिक है। किन्तु स्थापना निक्षेप के साथ एक अन्य पक्ष
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