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________________ पंचेन्द्रिय जीवों के बद्ध-मुक्त शरीर ३८५ वर्ग को परस्पर गुणित करने पर - १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ (छठा वर्ग) प्राप्त होता है। इस छठे वर्ग को पंचम वर्ग से गुणित करने पर - ७६२२८१६२५१४२६४३३७५६३५४ - ३६५०३३६ राशि प्राप्त होती है। यह उनतीस अंकों में है। यह गर्भज मनुष्यों का जघन्य पद में संख्या प्रमाण है। इसी को छियानवे छेदनकदायी राशि प्रमाण द्वारा बतलाया गया है। अर्थात् जो क्रमशः आधी करते-करते छियावने बार छेदन को प्राप्त हो और अंत में एक बच जाए, उसे छियानवे छेदनकदायी राशि कहते हैं। अर्थात् पूर्व में प्राप्त २६ अंकों की राशि को छियानवे छेदनकदायी राशि कहते हैं। क्योंकि इसको क्रमशः ६६वें बार आधी-आधी करें तो अंत में एक शेष रहता है। पूर्व वर्णित वर्ग क्रम संक्षिप्त है और क्रमशः बढ़ते क्रम में है, जिससे २९ (उनतीस) अंकों की राशि प्राप्त होती है . और यह उससे विपरीत क्रम है। छेदनक का तात्पर्य किसी वर्ग विशेष के उतनी बार विभाजन से है। जैसे - पूर्ववर्णित तृतीय वर्ग - १६४१६=२५६ के आठ छेदनक होंगे, यथा - १२८, ६४, ३२, १६, ८, ४, २, १। इसी प्रकार प्रथम वर्ग के दो छेदनक होंगे - २४२-४ (प्रथम वर्ग) २, १। तात्पर्य यह है कि अन्तिम पाँचवें एवं छठे वर्ग में होने वाले छेदनकों को जोड़ा जाए (क्रमशः - ३२ एवं ६४) तो कुल छियानवें छेदनक होते हैं। .. अतः इस २६ अंकों की संख्या को छियानवे छेदनकदायी राशि कहा गया है। यहाँ क्षेत्रापेक्षया रूप प्रक्षिप्त उत्कृष्ट पद स्थित मनुष्य श्रेणी के रिक्त किए जाने का जो उल्लेख हुआ है, उसका अभिप्राय यह है - _ यहाँ उत्कृष्ट पद से सम्मूर्छिम और गर्भज दोनों प्रकार के मनुष्य गृहीत हैं। ऐसे मनुष्यों से एक नभःश्रेणि परिव्याप्त है। इस नभःश्रेणि से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश से एक-एक मनुष्य अपहृत किया जाए - हटाया जाए तो उसके रिक्त होने में असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल व्यतीत होते हैं। असत् कल्पना से अंगुल मात्र सूची श्रेणी में २५६ प्रदेश मानकर इसका प्रथम वर्गमूल १६ होता है। दूसरा वर्गमूल ४ होता है। तीसरा वर्गमूल २ होता है। इस प्रकार प्रथम वर्गमूल को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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