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अनुयोगद्वार सूत्र
तीसरे वर्गमूल से गुणा करने पर जितने प्रदेश होवे, घनीकृत लोक की एक सूची श्रेणी के इतने प्रदेशों पर एक-एक मनुष्य को रखने पर पूरी सूची श्रेणी भर जाती है। यदि एक मनुष्य और हो तो। अर्थात् एक मनुष्य जितनी जगह खाली रहती है। उत्कृष्ट पद में मनुष्यों की इतनी संख्या होती है, उसमें गर्भज और सम्मूर्छिम दोनों प्रकार के मनुष्य शामिल हैं। इस राशि में से गर्भज मनुष्यों की संख्या को निकालने पर सम्मूर्छिम मनुष्यों की संख्या का परिमाण आ जाता है।
कल्पना से एक सूची श्रेणी में ३२ लाख प्रदेश मानकर इसमें उपर्युक्त रीति से ३२-३२ प्रदेशों पर १-१ मनुष्य को रखने से पूरी श्रेणी भर जाती है, एक मनुष्य जितनी (३२ प्रदेश जितनी) जगह खाली रहती है। अर्थात् उस श्रेणी में EEEEE जितने मनुष्य समावेश होते हैं। उपर्युक्त सभी राशि कल्पना से कही गई है। तत्त्व से तो प्रत्येक राशि असंख्यात प्रदेशों की समझना चाहिए।
मणुस्साणं भंते! केवइया वेउब्वियसरीरा पण्णता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २॥
तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं संखिज्जा, समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा संखेज्जेणं कालेणं अवहीरंति, णो चेव णं अवहिया सिया। मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियाणं मुक्केल्लया तहा भाणियव्वा।।
भावार्थ - हे भगवन्! मनुष्यों के कितने वैक्रिय शरीर कहे गए हैं? हे आयुष्मन् गौतम! ये मुक्त और बद्ध के रूप में दो प्रकार के कहे गए हैं।
उनमें जो बद्ध हैं, वे संख्यात हैं तथा समय-समय में अपहृत किए जाने पर संख्यातकाल में अपहृत होते हैं। लेकिन (अभी तक) अपहृत नहीं किए गए हैं।
मुक्त वैक्रिय शरीरों के संदर्भ में मुक्त औधिक औदारिक शरीरों की भाँति कथनीय है। मणुस्साणं भंते! केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २।
तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं सिय अत्थि सिय णत्थि, जइ अस्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं। मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया तहा भाणियव्वा। तेयगकम्मगसरीरा जहा एएसिं चेव ओरालिया तहा भाणियव्वा।
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