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________________ नाम आवश्यक नाम आवश्यक से किं तं णामावरसयं? णामावस्सयं - जस्स णं जीवस्स वा, अजीवस्स वा, जीवाण वा, अजीवाण वा, तदुभयस्स वा, तदुभयाणं वा, 'आवस्सए' त्ति णामं कज्जइ। सेत्तं णामावस्सयं। शब्दार्थ - जीवाण - जीवों का, अजीवाण - अजीवों का, कज्जइ (कीरए) - कथित किया जाता है। ___ भावार्थ - नाम आवश्यक क्या है, कैसा होता है? जिस किसी जीव का या अजीव का अथवा जीवों का या अजीवों का अथवा तदुभय - जीव-अजीव का या तदुभयों - जीवों-अजीवों का लौकिक व्यवहार हेतु जो नाम रखा जाता है, वह नाम-स्थापना संज्ञक आवश्यक है। विवेचन - नाम आवश्यक का जो निरूपण हुआ है, उसका आधार नाम निक्षेप है। ____ जहाँ शब्द का व्युत्पत्तिगम्य अर्थ सिद्ध नहीं होता, वह नाम निक्षेप है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि अर्थ की दृष्टि से शब्द का संरचना विषयक विश्लेषण व्युत्पत्ति कहा जाता है। जो शब्द व्युत्पत्ति संगत अर्थ व्यक्त करते हैं, उन्हें यौगिक कहा जाता है। जिन शब्दों के साथ व्युत्पत्ति घटित नहीं होती, रूढ़ि या परम्परा से जिनका अर्थ किया जाता है, वे रूढ़ कहलाते हैं। जिन शब्दों की व्युत्पत्ति तो होती है किन्तु उसके अनुरूप अर्थ नहीं किया जाता, जो किसी विशेष अर्थ में रूढ़ हो जाते हैं, उन्हें योगरूढ़ कहा जाता है। ___ नाम निक्षेप में किसी शब्द का अर्थ व्युत्पत्ति आदि का अनुसरण नहीं करता। वह केवल प्रत्यक्षतः व्यवहृत संकेत का सूचन करता है। जैसे किन्हीं धनहीन माता-पिता ने अपने पुत्र का नाम धनाधीश रखा। धनाधीश का अर्थ धन या सम्पत्ति का अधिपति होता है। यहाँ आर्थिक दृष्टि से विपन्न माता-पिता का पुत्र जन्म लेते ही धन का अधिनायक कैसे हो सकता है? किन्तु लोक में उसी नाम से पुकारा जाता है। किसी भीरू या कायर का नाम भी शूरवीर हो सकता है किन्तु व्युत्पत्ति की दृष्टि से तो शौर्य एवं वीरता का उसमें अभाव होता है। अतः वह अर्थ की व्युत्पत्ति की दृष्टि से असंगत है। फिर भी लोक में उसका प्रचलन होता है। इसका अभिप्राय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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