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सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम
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अपने नामानुरूप आशय लिए हुए एक कोठा हो, जो कूष्मांडों के फलों से भरा हो। फिर इसमें यदि बिल्व फल डाले जाएँ तो ये भी समा जायेंगे। तदनन्तर आँवले डाले जाएँ तो वे भी इसमें समा जाते हैं। इसके पश्चात् बदरीफल प्रक्षिप्त किए जाएँ तो वे भी समाविष्ट हो जाते हैं। इसके बाद चने डालने पर वे भी समा जाते हैं। तदनंतर मूंग डालने पर वे भी समा जाते हैं। फिर सरसों डालने पर वे भी समा जाती हैं। तत्पश्चात् गंगा महानदी की बालू डालने पर वह भी उस (कोठे) में समा जाती है। ___ इस प्रकार इस दृष्टांत से यह स्पष्ट है कि बालाग्र खण्डों से अच्छी तरह भरे जाने के बाद भी उस पल्य के ऐसे आकाशप्रदेश होते हैं, जो इन बालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट रह जाते हैं।
गाथा - इन पल्यों को दस कोटा कोटि से गुणित करने पर प्राप्त प्रमाण एक सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम के बराबर होता है।
विवेचन - व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम और सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम में क्रमशः कुएं को बालानों से एवं बालागों के असंख्यात खण्डों से ठसाठस भरे जाने का जो उल्लेख हुआ है। उस स्थिति में सहज ही यह प्रश्न उपस्थित होता है - बालारों या बालानों के खण्डों द्वारा भलीभाँति पल्य भरा जा चुका हो तो फिर क्या उसमें ऐसे आकाशप्रदेश रहते हैं, जो. बालानों से अस्पृष्ट हों? ___इस संबंध में समाधान यह है कि - बालाग्र चाहे असंख्यात रूप में खण्ड-खण्ड ही क्यों न किए जाएँ, सूक्ष्म आकाशप्रदेशों की तुलना में तो वे बादर ही हैं। इसलिए बाह्य दृष्टि से बालागों से अस्पृष्ट आकाशप्रदेश अवलोकित न होते हों, फिर भी उनका अस्तित्व बना रहता है। क्योंकि 'सूक्ष्म' सूक्ष्म ही है, 'स्थूल' स्थूल ही है। ___ इसी को कूष्माण्ड से लेकर गंगामहानदी के बालुका कणों से कोठे को भरे जाने तक के दृष्टांत से समझाया गया है। इसमें क्रमशः बड़े पदार्थों में छोटे पदार्थों के समाविष्ट होने का वर्णन है। क्योंकि भरे जाने पर भी कुछ न कुछ रिक्त स्थान - अवकाश बचा रह जाता है। ____ जैसे अच्छी ईंट और सीमेंट से चुनी हुई, लिपी हुई, परिपक्व एवं शुष्क दीवाल में कील ठोकी जाय तो, वह उसमें प्रविष्ट हो जाती है। यद्यपि दीवाल अत्यंत सघन प्रतीत होती है किन्तु गारे-ईंट आदि के बादर - स्थूल कणों के परस्पर सघनता से मिले हुए दिखने पर भी उनके बीच आकाशप्रदेश-रिक्त स्थान रह ही जाते हैं।
एएहिं सुहुमेहिं खेत्तपलिओवमसागरोवमेहिं किं पओयणं?
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