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अनुयोगद्वार सूत्र
एएहिं सुहुमेहिं खेत्तपलिओवमसागरोवमेहिं दिट्ठिवाए दव्वा मविज्जंति॥ शब्दार्थ - दिट्ठिवाए - दृष्टिवाद में, मविज्जति - माप करते हैं। भावार्थ - इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन हैं? इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम से दृष्टिवाद में उल्लिखित द्रव्यों का मान किया जाता है।
विवेचन - सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम, का स्वरूप संक्षिप्त में इस प्रकार समझना चाहिए - पूर्व वर्णित सूक्ष्म उद्धार पल्योपम के समान समझना चाहिए, किन्तु फर्क यह है कि उन असंख्याता बालाग्र खंडों से पल्य के जो स्पर्शित आकाश प्रदेश हैं तथा जो अस्पर्शित आकाश प्रदेश हैं, उनमें से प्रति समय एक-एक आकाश प्रदेश को निकालने पर जितने काल में उन आकाश प्रदेशों की गिनती होती है, उतने काल को एक सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम कहते हैं। उनको दस कोडाकोडी से गुणा करने पर एक सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम का परिमाण होता है। इन पल्योपम सागरोप्रम के द्वारा दृष्टिवाद के द्रव्य मापे जाते हैं। बालाग्र खंडों से अस्पृष्ट और स्पृष्ट दोनों प्रकार के आकाश प्रदेशों को ग्रहण करने का कारण यह है कि उन बालाग्रों के असंख्यात खंड कर दिए जाने पर भी वे बादर-स्थूल हैं। अतएव उन बालाग्रखंडों से अस्पृष्ट अनेक प्रदेश सम्भवित है और बादरों में अन्तराल होना स्वाभाविक है। ___दृष्टिवाद के कितनेक द्रव्यों को बालाग्र खंडों के स्पर्शित आकाश प्रदेशों से मापा जाता है। तथा कितनेक द्रव्यों को अस्पर्शित आकाश प्रदेशों से मापा जाता है, इस कारण से यहाँ पर स्पर्शित और अस्पर्शित दोनों प्रकार के प्रदेशों में अपहार करना बताया है। ऐसा टीका में समाधान दिया है।
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द्रव्य वर्णन कइविहा णं भंते! दव्वा पण्णत्ता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - जीवदव्वा य १ अजीवदव्वा य २। शब्दार्थ - कइविहा - कतिविधा - कितने प्रकार के। भावार्थ - हे भगवन्! द्रव्य कितने प्रकार के परिज्ञापित हुए हैं? हे आयुष्मन् गौतम! द्रव्य दो प्रकार के कहे गए हैं -
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