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अनुयोगद्वार सूत्र
के असंख्यातवें भाग तुल्य हों एवं सूक्ष्म पनक जीवों की शरीरावगाहना से असंख्यातगुने हों। इन बालानों को अग्नि जला नहीं सकती यावत् उनमें दुर्गन्ध उत्पन्न नहीं हो सकती। उस पल्य के बालारों से जो आकाशप्रदेश व्याप्त-स्पृष्ट हों अथवा अव्याप्त-अस्पृष्ट हों, उनमें से प्रत्येक समय एक-एक आकाश प्रदेश का अपहरण किया जाय - निकाला जाय तो जितने काल में वह कुआँ क्षीण यावत् पूर्णतः रिक्त हो जाए, वह सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम का स्वरूप है।
तत्थ णं चोयए पण्णवगं एवं वयासी - अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा जे णं तेहिं वालग्गेहिं अणाफुण्णा?
हंता! अत्थि। जहा को दिटुंतो?
से जहाणामए कोट्ठए सिया कोहंडाणं भरिए, तत्थ णं माउलिंगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं बिल्ला पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं आमलगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं बयरा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं चणगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं मुग्गा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं सरिसवा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं गंगावालुया पक्खित्ता सा वि माया, एवमेव एएणं दिटुंतेणं अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा जे णं तेहिं वालग्गेहिं अणाफुण्णा। गाहा - एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भवेज दसगुणिया।
तं सुहमस्स खेत्तसागरोवमस्स, एगस्स भवे परिमाणं॥२॥ शब्दार्थ - चोयए - प्रेरक (जिज्ञासु), अणाफुण्णा - अस्पृष्ट-अव्याप्त, कोहंडाणं - कूष्माण्डों के, माउलिंगा - बिजौरा फल, पक्खित्ता - डाले गए हों, बिल्ला - बिल्वफल, आमलगा - आँवले, बयरा - बेर (बदरी फल), चणगा - चने, माया - समा जाते हैं, मुग्गा - मूंग, सरिसव - सरिसर्प-सरसों, गंगावालुया - गंगा महानदी की बालू।
भावार्थ - इस प्रकार से प्ररूपणा - कथन करने पर जिज्ञासु ने प्रश्न किया - क्या उस पल्य के ऐसे भी आकाशप्रदेश हैं, जो उन बालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट हों? हाँ, (ऐसे आकाश प्रदेश) हैं। इस संदर्भ में क्या दृष्टांत है? (इस विषय को समझाने के लिए क्या दृष्टांत - उदाहरण है?)
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