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आवश्यक सूत्र का स्वरूप विश्लेषण
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तम्हा आवस्सयं णिक्खिविस्सामि, सुयं णिक्खिविस्सामि, खंधं णिक्खिविस्सामि, अज्झयणं णिक्खिविस्सामि। गाहा - जत्थ य जं जाणेजा, णिक्खेवं णिक्खिवे णिरवसेसं। .
जत्थ वि य ण जाणेजा, चउक्कयं णिक्खिवे तत्थ॥१॥ शब्दार्थ - तम्हा - इस कारण, णिक्खिविस्सामि - निक्षेप करूंगा, जत्थ - जहाँ, जं - जो, जाणेज्जा - ज्ञात हो, णिक्खेवं - निक्षेप, णिक्खिवे - निक्षेप करे, णिरवसेसं - समस्त, चउक्कयं - चतुःकृत - चार, तत्थ - वहाँ।
भावार्थ - इसलिए आवश्यक की (निक्षेपानुसार) व्याख्या करूंगा। इसी प्रकार श्रुत, स्कंध एवं अध्ययन आदि का निक्षेपानुसार निरूपण करूंगा। - गाथा - यदि निक्षेपकर्ता निक्षेप करने योग्य वस्तु को निरवशेषतया-समग्र रूप में जानता हो तो वह तदनुरूप निक्षेप करे। यदि वह वैसा (निरवशेषतया) नहीं जानता हो तो (नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भाव रूप) चार निक्षेपों के अनुसार विवेचन करे।
विवेचन - जैन दर्शन में निक्षेप वाग्व्यवहार की एक विशेष पद्धति है। प्रसंग की अपेक्षा से किसी शब्द का एक से अधिक अर्थों में प्रयोग करना निक्षेप है।
जीवन व्यवहार के साथ भाषा का अनन्य संबंध है। वह भावाभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा का शाब्दिक या पदात्मक दृष्टि से शुद्ध प्रयोग व्याकरण से स्वायत्त होता है किन्तु किसी शुद्ध शब्द की प्रासंगिकता के आधार पर उसका भिन्न अर्थों में भी प्रयोग होता है। मुख्यतः वैसे चार प्रसंग स्वीकार किए गए हैं, जो नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के रूप में हैं। प्रस्तुत सूत्र में निक्षेप करने या निक्षेप के आधार पर प्रतिपादित करने की जो बात कही गई है, वह प्रसंगानुरूप निरूपण से संबंधित है। इससे प्रस्तुत विषय का सम्यक् विधान होता है और अप्रस्तुत का सहज ही निराकरण होता है। इससे वर्ण्य विषय का ज्ञान विशदता पूर्वक अधिगत होता है। एक ही शब्द का यह भिन्नार्थक प्रयोग विसंगत नहीं होता।
स्वाध्याय सूत्र, नवम अधिकार, सूत्र - ४६
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