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________________ ३४६ अनुयोगद्वार सूत्र सम्मूर्छिम मनुष्यों के संदर्भ में प्रश्न किया गया है। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः और उत्कृष्टतः - दोनों ही अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। गर्भव्युत्क्रांतिक मनुष्यों की स्थिति के विषय में पृच्छा की गई है। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की होती है। हे भगवन्! अपर्याप्तक गर्भव्युत्क्रांति मनुष्यों की स्थिति कितनी कही गई है? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः और उत्कृष्टतः - दोनों ही अन्तर्मुहर्त प्रमाण हैं। हे भगवन्! पर्याप्तक-गर्भव्युत्क्रांतिक मनुष्यों की स्थिति के संदर्भ में पृच्छा की गई है। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। वाणव्यंतर देवों की स्थिति वाणमंतराणं देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं पलिओवमं। वाणमंतरीणं देवीणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णता? ' गोयमा! जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं। भावार्थ - हे भगवन्! वाणव्यंतर देवों की स्थिति कितनी बतलाई गई है? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः दस हजार वर्ष और उत्कृष्टतः एक पल्योपम की होती है। __ हे भगवन्! वाणव्यंतर देवियों की स्थिति कियत्कालिक प्रज्ञापित हुई है? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः दस हजार वर्ष एवं उत्कृष्टतः अर्द्धपल्योपम परिमित होती है। ज्योतिष्क देवों की स्थिति जोइसियाणं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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